कालीमठ मंदिर एवं कालीशिला : माँ काली का सिद्धपीठ | Kalimath Temple Uttarakhand
उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग ज़िले में स्थित कालीमठ (Kalimath) एक प्रमुख शक्तिपीठ है, जो हिमालय की सुरम्य घाटी में, सरस्वती नदी के तट पर बसा है। बर्फ से ढकी केदारनाथ की चोटियों से घिरा यह पवित्र स्थल उखीमठ और गुप्तकाशी के निकट लगभग 6,000 फीट की ऊँचाई पर स्थित है। मान्यता है कि यहीं पर मां काली ने रक्तबीज असुर का वध कर पृथ्वी में लीन हो गई थीं। आज भी यहां पर रक्तशिला, मातंगशिला व चंद्रशिला स्थित हैं।
कालीमठ मंदिर की पुनर्स्थापना आदिगुरु शंकराचार्य ने की थी। स्कंदपुराण के अंतर्गत केदारखंड के बासठवें अध्याय में माता के इस शक्तिपीठ का वर्णन है। यहाँ रुद्रशूल नामक राजा की ओर से बाह्मी लिपि में लिखे गए शिलालेख स्थापित किये गए हैं जिनमें इस मंदिर का पूरा वर्णन है।
कालीमठ मंदिर की विशेषता
कालीमठ मंदिर में देवी काली की मूर्ति नहीं है बल्कि यहां श्रीयंत्र (रजत पट) की पूजा की जाती है। मंदिर में वर्ष में केवल एक बार, शारदीय नवरात्रों की अष्टमी के दिन मध्यरात्रि में, मुख्य पुजारी द्वारा देवी की विशेष पूजा की जाती है। यह स्थान साधना और ध्यान के लिए अत्यंत उपयुक्त माना जाता है।
यहां मां काली के साथ ही महालक्ष्मी, महासरस्वती और गौरी-शंकर के प्राचीन मंदिर भी हैं। इनके आसपास अनेक प्राचीन शिवलिंग, नंदी और गणेश की मूर्तियां देखने को मिलती हैं। महालक्ष्मी मंदिर में एक अखंड ज्योति निरंतर प्रज्वलित रहती है। निकट ही भैरवनाथ मंदिर भी स्थित है।
कालीशिला : मां काली का प्रकाट्य स्थल
कालीमठ से लगभग 8 किलोमीटर की दूरी पर, 8,000 फीट की ऊँचाई में स्थित है कालीशिला। मान्यता है कि यहीं पर मां दुर्गा ने 12 वर्षीय कन्या के रूप में शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज का संहार करने के लिए अवतार लिया था। इस शिला में 64 यंत्र विद्यमान हैं, जिनसे मां को शक्ति प्राप्त हुई थी।
स्थानीय किवदंती है कि यही वह स्थान है जहां माता सती ने पार्वती के रूप में दूसरा जन्म लिया था। कालीमठ मंदिर के पास ही मां ने रक्तबीज का वध किया और उसके रक्त को पृथ्वी पर न गिरने देने के लिए स्वयं पी लिया। रक्तबीज शिला आज भी नदी के किनारे स्थित है। रक्तबीज वह असुर था जिसने रक्त की हर बूंद से नए असुरों को जन्म देने की शक्ति प्राप्त की थी।
कालीमठ का दिव्य कुंड
मंदिर में एक गुप्त कुंड है जिसे शारदीय नवरात्रों में अष्टमी के दिन खोला जाता है। मान्यता है कि रक्तबीज वध के बाद जब मां काली शांत नहीं हुईं, तो भगवान शिव उनके चरणों के नीचे लेट गए। जैसे ही मां ने शिवजी के वक्षस्थल पर पग रखा, वे शांत होकर इसी कुंड में अंतर्ध्यान हो गईं। यही कारण है कि कालीमठ को शिव-शक्ति का संयुक्त स्थल माना जाता है।
अन्य पवित्र स्थल
कालीमठ के पास ही कई अन्य दिव्य तीर्थ भी स्थित हैं।
- कोटिमहेश्वरी और रुच्छ महादेव : यह स्थल कालीमठ से लगभग 5–6 किमी दूर है। यहां मधुगंगा और सरस्वती नदियों का संगम होता है।
- रुच्छ महादेव का लिंग नदी के बीच चट्टान पर स्थित है। मान्यता है कि माता पार्वती अपने बाल्यकाल में यहां खेला करती थीं और समीप स्थित झरने में स्नान करती थीं।
सांस्कृतिक महत्व
कालीमठ का प्राचीन नाम कविल्था (Kaviltha) है और यही महाकवि कालिदास का जन्मस्थान माना जाता है। यहीं उन्हें मां काली का आशीर्वाद प्राप्त हुआ और वे संस्कृत के महान कवि बने।
कालीमठ मंदिर तक कैसे पहुंचे?
सड़क मार्ग से
कालीमठ मंदिर हरिद्वार, ऋषिकेश, श्रीनगर, रुद्रप्रयाग और उखीमठ होते हुए पहुँचा जा सकता है। उखीमठ से कालीमठ मंदिर केवल 20 km दूर है।
फ्लाइट से
निकटतम हवाई अड्डा जॉली ग्रांट एयरपोर्ट, देहरादून है। यहाँ से बस, टैक्सी या कार द्वारा रुद्रप्रयाग होते हुए मंदिर पहुँचा जा सकता है।
ट्रेन से
सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश (187 km) है। वहाँ से बस या टैक्सी के माध्यम से कालीमठ पहुँचा जा सकता है। भविष्य में चारधाम रेल परियोजना पूरी होने पर यहाँ रेल से यात्रा और भी आसान हो जाएगी।
देवी के प्रमुख शक्तिपीठ
- पूर्णागिरि धाम: हिमालय की गोद में बसा एक प्रमुख शक्तिपीठ।
- चंद्रबदनी मंदिर: श्रीयंत्र में स्थित माँ चन्द्रबदनी शक्तिपीठ।
- गर्जिया देवी मंदिर का इतिहास, धार्मिक मान्यता और महत्व।
निष्कर्ष
कालीशिला और कालीमठ केवल धार्मिक स्थल ही नहीं बल्कि देवी-शक्ति की अद्वितीय कथा और आस्था के केंद्र हैं। यहाँ माँ काली, माँ लक्ष्मी और माँ सरस्वती एक साथ पूजित हैं, जो इसे और भी खास बनाता है। नवरात्रि के दौरान यहाँ की भव्यता देखते ही बनती है।