बद्रीनाथ एवं केदारनाथ : उत्तर के दो प्रमुख तीर्थस्थलों की ख़ास जानकारी
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Badrinath and Kedarnath |
उत्तर भारत के दो तीर्थस्थल बद्रीनाथ एवं केदारनाथ संपूर्ण भारतवासियों के प्रमुख आस्था-केंद्र हैं। धामों की संख्या चार है, बद्रीनाथ, द्वारका, रामेश्वरम् एवं जगन्नाथपुरी। ये धाम भारतवर्ष के क्रमश: उत्तरी, पश्चिमी, दक्षिणी एवं पूर्वी छोरों पर स्थित हैं। बद्रीनाथ उत्तराखंड, द्वारिका गुजरात, रामेश्वरम तमिलनाडु और जगन्नाथपूरी उड़ीसा में स्थित है। बद्रीनाथ धाम और केदारनाथ के कपाट शरद् ऋतु में बंद हो जाते हैं और ग्रीष्म ऋतु के प्रारंभ में खुलते हैं। शेष तीन धामों की यात्रा पूरे वर्ष चलती रहती है।
उत्तर के दो प्रमुख तीर्थस्थल
उत्तर के दो तीर्थस्थल बद्रीनाथ और केदारनाथ किन्हीं दृष्टियों से एक-दूसरे से भिन्न हैं। पहली भिन्नता तो यह है कि बद्रीनाथ धाम है और केदारनाथ तीर्थस्थल है। दूसरी भिन्नता यह है कि बद्रीनाथ में विष्णु के विग्रह की पूजा होती है और केदारनाथ में शिव के विग्रह की पूजा। तीसरी भिन्नता यह है कि शीतकाल में बद्रीनाथ से भगवान विष्णु का विग्रह उठाकर ऊखीमठ में ले जाया जाता है। ऊखीमठ में भगवान की पूजा नहीं होती है। इसके विपरीत केदारनाथ में शिव का विग्रह यथावत् यथास्थान पर बना रहता है और कपाट बंद हो जाने पर विग्रह की पूजा नहीं होती है।
बद्रीनाथ
बद्रीनाथ क्षेत्र में बदरी (बैर) के जंगल थे, इसलिए इस क्षेत्र में स्थित विष्णु के विग्रह को बद्रीनाथ की संज्ञा प्राप्त हुई। किसी कालखंड में बद्रीनाथ के विग्रह को कुछ अनास्थाशील तत्वों ने नारदकुंड में फेंक दिया। आदिशंकराचार्य भारत-भ्रमण के क्रम में जब यहां आए, तो उन्होंने नारदकुंड में प्रवेश करके विष्णु के इस विग्रह का उद्धार किया और बद्रीनाथ के रूप में इसकी प्राण-प्रतिष्ठा की। बद्रीनाथ के दो और नाम हैं, बदरीनाथ एवं बद्रीविशाल।
केदारनाथ
केदारनाथ में शिव के विग्रह की पूजा होती है। सामान्यत:शिव की पूजा शिवलिंग के रूप में होती है, पर केदारनाथ में शिव के विग्रह का स्वरूप भैंसे की पीठ के ऊपरी भाग की भांति हैं। इस संबंध में एक पौराणिक कथा आती है। महाभारत के बाद परिवारजनों के हत्याजनित पाप से मुक्ति के लिए पांडव प्रायश्चित-क्रम में भगवान शिव के दर्शन करना चाहते थे। भगवान शिव पांडवों से रुष्ट थे। वे उन्हें पापमुक्त नहीं करना चाहते थे। पांडवों की खोजी दृष्टि बचने के लिए भगवान शंकर ने महिष का रूप धारण कर लिया और महिष दल में सम्मिलित हो गए। भगवान शंकर को खोजने का काम भीम कर रहे थे। किसी तरह भीम ने यह जान लिया कि अमुक महिष ही भगवान शंकर हैं। वह उनके पीछे दौड़ा। भीम से बचने के क्रम में भगवान शंकर पाताल लोक में प्रवेश करने लगे।
कहा जाता है कि पाताल लोक में प्रवेश करते हुए भगवान शंकर के पृष्ठ भाग को पकड़ लिया और उन्हें दर्शन देने के लिए बाध्य कर दिया। अंतत:भगवान शंकर के दर्शन से सभी पांडव पापमुक्त हो गए। इस घटना के बाद लोक में महिष के पृष्ठभाग के रूप में भगवान शंकर की पूजा होने लगी। केदारनाथ में महिष का पृष्ठभाग ही शिव-विग्रह के रूप में स्थापित है। यह घटना जिस क्षेत्र में हुई उसे 'गुप्त काशी' कहा जाता है।
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ब्रह्मकपाल: जहाँ पिंडदान किया जाता है
बद्रीनाथ मंदिर के पास ब्रह्मकपाल नामक एक स्थान है। यहां पितरों के लिए पिंडदान किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि जिन पितरों का श्राद्ध यहां हो जाता है, वह देवस्थिति में आ जाते हैं। उन्हें 'गया' अथवा अन्य स्थान पर पिंडदान की आवश्यकता नहीं होती।
बद्रीनाथ मंदिर के शिल्पी
बद्रीनाथ का वर्तमान मंदिर अधिक प्राचीन नहीं है। आज जो मंदिर विद्यमान है, उसके प्रधान शिल्पी श्रीनगर के लछमू मिस्त्री थे। इस मंदिर को रामनुज संप्रदाय के स्वामी वरदराज की प्रेरणा से गढ़वाल नरेश ने पंद्रहवीं शताब्दी में बनवाया। मंदिर पर सोने का छत्र और कलश इंदौर की महारानी अहिल्याबाई ने चढ़वाया। मंदिर में वरिष्ठ और कनिष्ठ दो रावल (पुजारी) होते हैं। दोनों का चयन केरल के नम्बूदरीपाद ब्राह्मण परिवार से होता है।
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जहाँ हुई ब्रह्मसूत्र की रचना
बद्रिकाश्रम क्षेत्र में बद्रीनाथ धाम के अतिरिक्त और बहुत से ऐसे तीर्थस्थल हैं, जहां कम यात्री पहुंच पाते हैं। व्यास गुफा एक ऐसा ही स्थान है। यह स्थान बद्रीनाथ धाम से लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर है। व्यास गुफा वह स्थान है, जहां महर्षि वेदव्यास ने ब्रह्मसूत्र की रचना द्वापर के अंत और कलियुग के प्रारंभ (लगभग 5108 वर्ष पूर्व) में की थी। मान्यता है कि आदिशंकराचार्य ने इसी गुफा में ब्रह्मसूत्र पर शरीरिक भाष्य नामक ग्रंथ की रचना की थी। व्यास गुफा के पास ही गणेश गुफा है। यह महर्षि व्यास के लेखक गणेश जी का वास स्थान था।
बद्रिकाश्रम क्षेत्र में अलकनंदा नदी है। अलकनंदा का उद्गमस्थान अलकापुरी हिमनद है। इसे 'कुबेर की नगरी' कहा जाता है। अलकापुरी हिमनद से निकलने के कारण इस नदी को अलकनंदा कहा जाता है। इसी क्षेत्र में सरस्वती नदी भी प्रभावित होती है। अलकनंदा और सरस्वती का संगम माणा नामक ग्राम के पास होता है, जो भारत के उत्तरी छोर का अंतिम ग्राम है, जिसे अब भारत का प्रथम ग्राम कहा जाता है। माणा ग्राम (Mana Village) की उत्तरी सीमा पर सरस्वती नदी के ऊपर एक शिलासेतु है। इसे भीमसेतु कहा जाता है। मान्यता है कि पांडव लोग सरस्वती नदी के जल में पैर रखकर उसे अपिवत्र नहीं करना चाहते थे। इसलिए भीम ने एक विशाल शिला इस नदी पर रखकर सेतु बना दिया। इसी सेतु से होकर पांडव लोग हिमालय क्षेत्र में हिममृत्यु का वरण करने के लिए गए थे। इसे सतोपंथ अथवा सत्यपथ/सत्य का रास्ता कहा जाता है। भीम-शिला के पास ही भीम का एक मंदिर है।
यह थी उत्तर के दो प्रमुख तीर्थ स्थल बद्रीनाथ और केदारनाथ के बारे में ख़ास जानकारी। यदि आपको यह जानकारी अच्छी लगी तो अन्य लोगों से भी साझा जरूर करें।