रहस्यों और आस्था से परिपूर्ण: पंच केदारों में एक-श्री रुद्रनाथ मंदिर।

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    रुद्रनाथ मंदिर: जहां शिव के मुख स्वरूप की होती है पूजा

उत्तराखंड, जिसे प्राचीन काल से देवभूमि या देवताओं की भूमि कहा जाता है, अपने रहस्यमय और आध्यात्मिक मंदिरों के लिए विश्व प्रसिद्ध है। हिमालय की गोद में बसे इन मंदिरों की विशेषता न केवल इनकी भौगोलिक कठिनाइयों में है, बल्कि उनसे जुड़ी पौराणिक और ऐतिहासिक मान्यताओं में भी छिपी है। ऐसा ही एक अत्यंत पवित्र और रहस्यपूर्ण मंदिर है-श्री रुद्रनाथ मंदिर, जो पंच केदारों में से एक प्रमुख तीर्थस्थल है।

कहां स्थित है श्री रुद्रनाथ मंदिर?

श्री रुद्रनाथ मंदिर उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है। यह मंदिर समुद्र तल से लगभग 3,600 मीटर (11,800 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है और यहां पहुंचने के लिए सगर गांव से लगभग 19 किलोमीटर की कठिन पैदल यात्रा करनी होती है। यह यात्रा जितनी चुनौतीपूर्ण है, उतनी ही आध्यात्मिक रूप से आनंददायक भी।

धार्मिक और पौराणिक मान्यता

रुद्रनाथ मंदिर को लेकर मान्यता है कि यह मंदिर महाभारत काल में पांडवों द्वारा भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए बनाया गया था। पंच केदारों की कथा के अनुसार, जब पांडव अपने कुल हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए भगवान शिव की तलाश में निकले, तो शिवजी उनसे छिपते हुए विभिन्न स्थानों पर प्रकट हुए। रुद्रनाथ में शिव के मुख (चेहरे) के रूप में दर्शन हुए, जो आज इस मंदिर में पूजित है।

मंदिर परिसर में भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव, माता कुंती और द्रौपदी की प्रतिमाएं भी स्थापित हैं, जो इस स्थान को और अधिक पवित्र बनाती हैं।

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अंधकासुर वध से जुड़ी कथा

यह भी कहा जाता है कि दैत्य अंधकासुर के अत्याचारों से त्रस्त होकर देवताओं ने इस स्थान पर आकर भगवान शिव की आराधना की थी। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर महादेव ने प्रकट होकर अंधकासुर से मुक्ति दिलाने का वचन दिया। इस कथा के चलते यह स्थान देवताओं की प्रार्थना का साक्षी भी माना जाता है।

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18 मई से खुले कपाट

हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी श्री रुद्रनाथ मंदिर के कपाट 18 मई को वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए हैं। अब अगले छह महीनों तक यहां भगवान शिव की नियमित पूजा-अर्चना की जाएगी। इस बार दैनिक दर्शन के लिए 140 श्रद्धालुओं की सीमा निर्धारित की गई है, जिससे दर्शन सुचारु रूप से हो सकें।

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दर्शन के लिए जरूरी पंजीकरण

रुद्रनाथ की यात्रा कठिन जरूर है, लेकिन भक्तों के उत्साह के सामने यह दूरी कुछ भी नहीं। हालांकि, इस तीर्थ यात्रा के लिए ऑनलाइन पंजीकरण अनिवार्य किया गया है। इससे प्रशासन को श्रद्धालुओं की सुविधा और सुरक्षा सुनिश्चित करने में मदद मिलती है।