राजा हरूहीत की लोकगाथा: कुमाऊँ की सांस्कृतिक आस्था और न्याय की अमर मिसाल

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Raja Haruhit ki Kahani


उत्तराखंड की धरती न सिर्फ प्राकृतिक सौंदर्य और आध्यात्मिकता से भरी है, बल्कि यहां की लोककथाएं भी इसकी सांस्कृतिक विरासत को जीवंत बनाए हुए हैं। ऐसी ही एक मार्मिक और प्रेरक गाथा है राजा हरूहीत की, जो आज भी कुमाऊँ की आस्था, न्याय और बलिदान का प्रतीक माने जाते हैं।

कहानी की शुरुआत: एक वैभवशाली राजा का पतन

राजा समर सिंह हीत, अल्मोड़ा जिले के तल्ला सल्ट के गुजड़कोट क्षेत्र के शासक थे। उनके सात पुत्र और सात पत्नियाँ थीं। राजवंश की समृद्धि ने उनके पुत्रों में घमंड भर दिया और वे निर्दोष ग्रामीणों को सताने लगे। इससे क्षुब्ध होकर गांववासियों ने श्राप दे दिया—खेत बंजर हों, पुत्र नष्ट हों और स्त्रियाँ संतानहीन रहें। अंततः श्राप फलीभूत हुआ—सातों पुत्रों की मृत्यु हो गई और राजा समर सिंह भी शोक में चल बसे।

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हरूहीत का उदय और न्याय की तलाश

राजा समर सिंह का आठवां पुत्र हरूहीत, उस समय मात्र छह माह का गर्भस्थ शिशु था। पिता की मृत्यु के बाद परिवार पर गरीबी छा गई। हरूहीत के बड़े होने पर, जब उसने गांव के बच्चों से अपने अतीत के बारे में जाना, तो सच्चाई जानने की जिद में उसने रामगंगा में छलांग लगाने की धमकी दी। माँ ने तब उसे सब कुछ बता दिया।

क्रोधित हरूहीत ने तलवार उठाई और गांव के लोगों से अपने पूर्वजों के खेतों को दोबारा उपजाऊ बनाने और बकाया राजस्व देने की मांग की। चमत्कार स्वरूप खेत फिर से हरे-भरे हो गए। ग्रामीणों ने सम्मान स्वरूप उसके लिए विवाह की व्यवस्था का सुझाव दिया।

भाभियों की ईर्ष्या और षड्यंत्र

लेकिन उसकी भाभियाँ नई बहू के डर से जलने लगीं और उसे मारने के षड्यंत्र रचने लगीं। उन्होंने उसे चांदीखेत के दो भाइयों के घर भेजा, जहां युद्ध में हरूहीत घायल हुआ। उसकी माँ के प्रार्थना करने पर गोलू देवता ने उसे चेतन किया और हरूहीत ने विजय प्राप्त की।

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भोट की राजकुमारी मालू रौतेली से विवाह

भाभियों ने अगला षड्यंत्र रचा—उसे भोट की राजकुमारी मालू रौतेली से विवाह करने को कहा, यह जानते हुए कि भोट काले जादू के लिए कुख्यात था। लेकिन मालू और हरूहीत एक-दूसरे को देखकर मोहित हो गए। कई परीक्षाओं के बाद, मालू ने उन्हें स्वीकार किया।

एक दिन दक्षिण दिशा का दरवाज़ा खोलने पर, मालू की बहनों ने हरूहीत को देखा और विवाह प्रस्ताव दिया। इंकार पर, गंगला नामक बहन ने हरूहीत को काले जादू से मारकर एक बक्से में बंद कर दिया। मालू ने सपना देखकर उन्हें पुनर्जीवित किया। बाद में पिता कालू शोत से युद्ध कर हरूहीत ने विजय प्राप्त की और मालू को अपने राज्य लाया।

अंतिम दुखद अध्याय: मालू की हत्या और आत्मबलिदान

हरूहीत की सफलता देख भाभियों का क्रोध और बढ़ गया। एक दिन जब वह भाभर में था, भाभियों ने मालू को रामगंगा में मछली दिखाने के बहाने बुलाकर मार डाला। मालू ने सपने में आकर सच्चाई बताई। हरूहीत ने भाभियों को दंडस्वरूप अग्नि को समर्पित कर दिया।

इसके बाद, उन्होंने अपनी माँ से भी अपने प्राण त्यागने की विनती की। अंत में, हरूहीत ने अपने और मालू के लिए दो चिताएँ बनवाकर खुद को अग्नि को समर्पित कर दिया।

राजा हरूहीत का मंदिर – आस्था का केंद्र

उत्तराखंड के हरडा मौलेखी गांव में स्थित राजा हरूहीत और समर सिंह का मंदिर आज भी श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है। दो सौ साल पुराना यह मंदिर मान्यता रखता है कि यहां सच्चे मन से मांगी गई मुरादें पूरी होती हैं।

मंदिर की एक खास बात यह है कि यहाँ से एक भूमिगत सुरंग रामगंगा नदी तक जाती है, जिसे कभी शाही स्नान के लिए इस्तेमाल किया जाता था। पास में एक चट्टान है जिस पर मालू रौतेली की घाघरी सुखाने के निशान आज भी दिखते हैं।

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मंदिर कैसे पहुंचे?

  1. दिल्ली से रामनगर (जिम कॉर्बेट): लगभग 270 किमी।
  2. रामनगर से मुहान और पौड़ी-मरचुला रोड: लगभग 30 किमी।
  3. हरडा मौलेखी गांव: दिल्ली से लगभग 300 किमी की दूरी पर।
  4. ट्रेकिंग: गांव से मंदिर तक 14 किमी का पहाड़ी ट्रेक है, जो बेहद रमणीय और आध्यात्मिक है।

राजा हरूहीत: न्याय, बलिदान और भक्ति की अमर कहानी

राजा हरूहीत की यह कथा केवल एक लोकगाथा नहीं, बल्कि कुमाऊँ की नैतिकता, श्रद्धा और न्याय की पहचान है। उनका मंदिर उन श्रद्धालुओं का आश्रय है जो दैवीय न्याय और आत्मिक शांति की तलाश में हैं।

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