पहाड़ी किस्से और कहानियां - हलदुआ और पिंगलुआ का किस्सा।

Pahadi-tales-and-stories


Uttarakhand Folk Tales : पहाड़ों के लोकजीवन में किस्से और कहानियों का विशेष स्थान रहा है। यहाँ से जुड़े किस्से और कहानियों में, आप प्रकृति के साथ गहरा संबंध, स्थानीय लोगों की संस्कृति और जीवनशैली, और कभी-कभी जादुई तत्वों को भी पाएंगे। ये कहानियां अक्सर स्थानीय भाषाओं में सुनाई जाती हैं और पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे बढ़ती हैं। बदलते दौर में ये किस्से और कहानियां धीरे-धीरे समाप्त होते जा रहे हैं। इसी बात को ध्यान में रखते हुए जोहार घाटी से जुड़ा एक रोचक किस्सा आप सभी के लिए प्रस्तुत है। आज के समय में शायद ही कोई ऐसी कहानियों पर विश्वास करे, लेकिन दादा-दादी का अपने पोते-पोतियों के लिए एक अच्छी कहानी हो सकती है। 

हलदुआ और पिंगलुआ का किस्सा

कहते हैं उत्तराखंड स्थित पिथौरागढ़ जिले के मल्ला जोहार पट्टी उन दोनों सरदारों के बीच आधी-आधी बंटी हुई थी।मापा से ऊपर हलदुआ और मापा से नीचे लस्पा तक पिंगलुआ के हिस्से में था। उन दिनों जोहार और हूणी देश (तिब्बत) के बीच का दर्रा बन्द था। इसलिए हुणियों और जोहार के बीच व्यापार बन्द था। जौहार वासी चौलाई और फाफर की खेती से अपनी गुजर बसर करते थे।

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उसी दौरान एक नभचर (पक्षी) गोरी नदी के उदगम् स्थल से पैदा हुआ। उसके पंख इतने बड़े थे कि नदी के ऊपर उड़ते-उड़ते लस्पा गांव के नीचे मापांग नामक जगह में, जहां घाटी तंग थी, अटक जाते थे, इसलिए वह पक्षी वहाँ से वापस लौट जाता था। वह मनुष्यों को खाया करता था। उसने हलदुआ और पिंगलुआ के बच्चे भी खाने शुरू कर दिए , और अंत में उन दोनों को भी खा गया।

उन दिनों जोहार के उस पार हूँण देश के लपथिल नामक स्थान में एक गुफा में  शकिया नामक लामा रहता था। वह लामा सुबह अपनी गुफा से उड़कर लपथिल आता और दिन भर परमात्मा का भजन कर शाम को अपनी गुफा में लौट जाता। उस लामा की गुफा के पास ही एक मनुष्य रहता था जो उस लामा की खूब सेवा किया करता था, उससे प्रसन्न  होकर एक दिन लामा ने उससे कहा "तू दक्षिण में जौहार की तरफ जा, वहाँ एक पक्षी ने सब मनुष्यों को खा लिया है, तू उसे मारकर मुल्क को फिर से आवाद कर, मैं तुझे एक तीरकमान और पथ प्रदर्शक देता हूँ। पथ प्रदर्शक चाहे कोइ भी रूप बदले, तू मत घबराना, और न ही उसका साथ छोड़ना। 

लामा ने एक शिष्य को पथ प्रदर्शक बनाकर उस मनुष्य के साथ भेज दिया। आगे आगे वह शिष्य और उसके पीछे वह मनुष्य तीर कमान लेकर चलने लगा , थोड़ी दूर चलकर वह शिष्य कुत्ता बन गया। उस स्थान का नाम खिंगरू रखा गया। वह  मनुष्य उस कुत्ते के साथ चलने लगा।  कुछ दूर चलकर वह दोलथांग (बारहसिंगा ) बन गया।  उस  स्थान का नाम दोलथांग रखा गया, बारहसिंघे के साथ कुछ दूर चलने पर वह  बारहसिंघा टोपीढू (भालू ) बन गया।  उस स्थान का नाम टोपीढूंग रखा गया।  भालू आगे चलकर ऊँट बन गया।  उस जगह का नाम ऊटाधुरा हो गया।  आगे चलकर वह ऊँट दुड़ (बाग़) बन गया , उस जगह का नाम दुड़ उड्यार रखा गया। अंत में वह बाघ हलदुआ और पिंगलुआ के देश में आकर समगाऊ (खरगोश) बनकर वहीं अंतर्ध्यान हो गया, वह स्थान अब समगाउ कहलाती है।

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वहां उस मनुष्य ने मकान, खेत आदि सब कुछ देखे, परन्तु उसे कोइ मनुष्य न दिखाई दिया। सिर्फ हड्डियों के ढेर दिखाई दिए। तब उसे उस पक्षी की याद आयी, डर के मारे वह एक मकान में घुसने लगा, तो उसे अंदर एक बुढ़िया दिखाई दी, जिसके सारे बदन पर बाल थे। उससे पूछने पर उसने हलदुआ और पिंगलुआ का सारा हाल सुनाया और कहा, आज वह पक्षी मुझे खायेगा और कल तुझे। तू यहां क्यों आया? 

तब उस मनुष्य ने शकिया लामा का सारा वृत्तांत उस बुढ़िया को सुनाया, और उसे तीरकमान दिखाया, कहा कि वह उस पक्षी को मारेगा, जौहार के बारे में पूछने पर उस बुढ़िया ने बताया कि यहां चुआ, फाफर  लाई आदि चीजें पैदा होती हैं ।  मकान बर्तन सब है बस नमक नहीं है। इतने में तेजी से वह पक्षी आया और उस बुढ़िया को उठा ले गया।   उस पक्षी ने जैसे ही चोंच से उस  बुढ़िया की छाती तोड़ी, उसी समय उस मनुष्य ने तीर से उस पक्षी को मार डाला। फिर एक स्थान  पर आग जलाकर वह मनुष्य नमक की  खोज में गया और कहा यदि मेरे वापस आने तक यह आग जलती रही तो यह देश मुझे फलीभूत होगा, अन्यथा नहीं।

फिर वह मनुष्य नमक के बारे में पूछताछ हेतु लामा के पास गया। लामा ने  कहा "वहां नमक की खानें बहुत हैं परन्तु दूर हैं। मैं तेरे लिए नमक इसी लपथिल में पैदा कर देता हूँ। लामा ने थोड़ा सा नमक मंगाकर वहाँ बोया। तब से वहाँ नमक की  तरह लगने वाला शोरे की चट्टानें बन गयी ।

उस दिन के बाद  वह लामा गुफा से उड़कर बाहर नहीं आया ,बार बार अपनी शक्तियों के प्रयोग से उसकी उड़ने की शक्ति क्षीण हो गयी।

शकिया लामा के गुफा में जाने  के बाद वह मनुष्य जौहार लौटा। उसी स्थान पर  गया, जहां उसने आग जलाई थी।  फिर उसने इधर उधर से लोगों को  बुलाकर वहाँ बसाया, शकिया लामा की पूजा चलाई जो आज भी जारी है।

उसी मनुष्य के वंशजों में एक वीर राजा सुनपत हुआ। जिसने कुमाँऊ के इतिहास में कत्यूरी राजाओं के साथ अपना स्थान बनाया ।

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Sourch : Shri Bala Dutt Belwal