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नरु-बिजुला की 600 साल पुरानी अद्भुत प्रेम कहानी।

On: October 12, 2025 10:36 PM
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Naru Bijula Story

Naru Bijula Story : पहली नजर का प्यार, इकरार, प्यार को पाने की कोशिश, दो इलाकों की परंपरागत दुश्मनी, रार और फिर प्यार करने वालों की जीत, यानी हर वो मसाला इस कहानी में है, जो बालीवुड फिल्मों के लिए अनिवार्य माना जाता है। अंतर है तो सिर्फ इतना कि बालीवुड में बनने वाली फिल्में काल्पनिक कहानियों पर आधारित होती हैं, जबकि यह एक सच्ची कहानी है। बात हो रही है उत्तरकाशी के दो भाइयों ‘नरु और बिजुला’ की। इन दोनों ने आज से करीब छह सौ साल पहले प्यार की खातिर कुछ ऐसा किया, जो प्रेम डगर पर पग धरने वालों के लिए नजीर बन गया। (Folk Story of Uttrakhand)

कहानी शुरू होती है पंद्रहवीं सदी से। उत्तरकाशी के तिलोथ गांव में रहने वाले दो भाई नरु और बिजुला गंगा घाटी में अपनी वीरता के लिए विख्यात थे। उन दिनों गंगा घाटी और यमुना घाटी के लोगों में परस्पर परंपरागत तौर पर दुश्मनी थी। इस बीच बाड़ाहाट के मेले ने नरु और बिजुला की जिंदगी बदलकर रख दी। दरअसल दोनों भाई मेले में गए थे, यहां उन्हें एक युवती दिखी, नजरें मिली और दोनों भाई उसे दिल दे बैठे। आंखों ही आंखों में युवती भी इकरार का इजहार कर वापस लौट गई। भाइयों ने युवती के बारे में पूछताछ की तो पता चला कि युवती यमुना पार रवांई इलाके के डख्याट गांव की रहने वाली थी। इसके बाद दोनों भाई डख्याट गांव पहुंचे तथा युवती को कुठार ( अनाज रखने वाले लकड़ी के बक्से) में छिपाकर तिलोथ गांव लेकर आए।

उधर, डख्याट से युवती को ले जाने की सूचना मिलते ही यमुना घाटी रवांई के कई गांवों के लोग इकट्ठा हो गए। उन्हें यह मंजूर नहीं था कि गंगा घाटी वाला उनकी बेटी को उठा ले जाए। सैकड़ों लोग हथियार लेकर नरु- बिजुला को तलाशने लगे। उनका पीछा करते हुए यह लोग ज्ञानसू पहुंचे और रात को यहीं विश्राम किया। ज्ञानसू में रवांई के लोगों के जमा होने की सूचना मिलते ही नरु-बिजुला ने अपने गांव की महिलाओं को अन्न-धन के भंडार समेत डुण्डा के उदालका गांव की ओर रवाना कर दिया और दोनों खुद ही रवांई वालों से लोहा लेने ज्ञानसू पहुंच गए।

बताया जाता है कि इस लड़ाई में नरु-बिजुला ने रवांई घाटी के सैकड़ों लोगों की पिटाई कर उन्हें भागने पर विवश कर दिया। इसके बाद दोनों ने अपनी पत्नी के साथ सुखद जीवन जिया। नरु-बिजुला की पीढि़यां आज भी तिलोथ गांव में रहती हैं। यहाँ के लोग नरु-बिजुला का वंशज होने पर गर्व करते हैं।

एक खास बात यह कि तिलोथ में नरु-बिजुला का छह सौ साल पुराना चार मंजिला भवन आज भी सुरक्षित है। आठ हाल व आठ छोटे कक्ष वाले भवन की हर मंजिल के चारों ओर खूबसूरत अटारियां बनी हैं। इसकी मजबूती का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उत्तरकाशी में 1991 में आया भीषण भूकंप भी इसे नुकसान नहीं पहुंचा सका।

Vinod Singh Gariya

ई-कुमाऊँ डॉट कॉम के फाउंडर और डिजिटल कंटेंट क्रिएटर हैं। इस पोर्टल के माध्यम से वे आपको उत्तराखंड के देव-देवालयों, संस्कृति-सभ्यता, कला, संगीत, विभिन्न पर्यटक स्थल, ज्वलन्त मुद्दों, प्रमुख समाचार आदि से रूबरू कराते हैं।

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