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कुमाऊंनी होली गीत – बुरूंशी का फूल को कुमकुम मारो

On: October 10, 2025 3:38 PM
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Burushi Ko Kumkum Maro

प्रस्तुत पंक्तियाँ उत्तराखंड के वरिष्ठ साहित्यकार और पत्रकार स्वर्गीय श्री चारु चंद्र चंदोला जी की हैं।

Burushi Ko Kumkum Maro

 
बुरूंशी का फूल को कुमकुम मारो,
डाना काना छाजि गे बसंत नारंगी।
पारवती ज्यू की झिलमिल चादर,
ह्यूं की परिनलै रंगे सतरंगी।
 
लाल भई हिमांचल रेखा,
शिवज्यू की शोभा पिंगली दनकारी।
सूरज की बेटियों लै सरगै बै रंग घोलि,
सारिही गागर ख्वारन खिति डारी। 
 
बुरूंशी को फूल को  कुमकुम मारो,
अबीर गुलालै कि धूल उड़ि गै,
लाल भई छन बादल सारा 
घर-घर हो हो हो लक ये कुनी 

घरवाइ जी रौ बरस हजारा। 

खितकनी झमकनी ममकनी भौजो 
मालिक दैण होयो भरिये भकारा 
पूत कुटुंब नानतिन प्वाथ जी रौ 
घर-बण सबनक होयो जै जै कारा। 
 
बुरूंशी का फूल को कुमकुम मारो,
डाना काना छाजि गे बसंत नारंगी। 
 
-चारु चंद्र पाण्डे 
 

Vinod Singh Gariya

ई-कुमाऊँ डॉट कॉम के फाउंडर और डिजिटल कंटेंट क्रिएटर हैं। इस पोर्टल के माध्यम से वे आपको उत्तराखंड के देव-देवालयों, संस्कृति-सभ्यता, कला, संगीत, विभिन्न पर्यटक स्थल, ज्वलन्त मुद्दों, प्रमुख समाचार आदि से रूबरू कराते हैं।

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