Holi-Song


बुरूंशी का फूल को कुमकुम मारो,
डाना काना छाजि गे बसंत नारंगी।
पारवती ज्यू की झिलमिल चादर,
ह्यूं की परिनलै रंगे सतरंगी।
 
लाल भई हिमांचल रेखा,
शिवज्यू की शोभा पिंगली दनकारी।
सूरज की बेटियों लै सरगै बै रंग घोलि,
सारिही गागर ख्वारन खिति डारी। 
 
बुरूंशी को फूल को  कुमकुम मारो,
अबीर गुलालै कि धूल उड़ि गै,
लाल भई छन बादल सारा 
घर-घर हो हो हो लक ये कुनी 
घरवाइ जी रौ बरस हजारा। 
 
खितकनी झमकनी ममकनी भौजो 
मालिक दैण होयो भरिये भकारा 
पूत कुटुंब नानतिन प्वाथ जी रौ 
घर-बण सबनक होयो जै जै कारा। 
 
बुरूंशी का फूल को कुमकुम मारो,
डाना काना छाजि गे बसंत नारंगी। 

-चारु चंद्र पाण्डे 


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