उत्तराखंड के कुमाऊँ और गढ़वाल अंचल की बोली-भाषा और संस्कृति को लोगों तक पहुंचाने के उद्देश्य से इस Ebook में वह परंपरागत बालगीत संकलित किए गए हैं जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी वाचिक परम्परा के माध्यम से हम तक पहुंचे थे। हम सबके जीवन की शुरुआत शिशुओं को सुलाने या बहलाने के लिए गाने जाने वाले गीतों से ही हुई है, उसके बाद लड़कपन में गाये जाने वाले क्रीड़ागीत और त्यौहारों के गीत भी इस संकलन में दिए गए हैं। पुराने समय में घर पर ही प्रारंभिक शिक्षा शुरू कर दी जाती थी, इसके लिए प्रयोग होने वाले कुछ गीत भी यहां शामिल हैं। अभी ऐसे सैकड़ों गीत संकलित होने से रह गए हैं जिन्हें दूरस्थ इलाकों में अभी भी गाया जा रहा होगा।
घुघूति बासूति भाग 1 (कुमाउनी) Ebook को पाठकों से मिले अपार स्नेह और सकारात्मक प्रतिक्रियाओं के फलस्वरूप एक ही महीने के भीतर हम इस Ebook का भाग 2 निकालने में सफल हो पाएं हैं। कोरोना लॉकडाउन के इस अभूतपूर्व संकट के बीच हम अधिकांश लोग अपने परिवार के लिए समय निकाल पा रहे हैं, बच्चों को विभिन्न रचनात्मक गतिविधियों के माध्यम से व्यस्त रखने का प्रयास भी कर रहे हैं। हमें उम्मीद है कि इस Ebook में संकलित गीत आपके लिए उपयोगी होंगे।
आपसे अनुरोध है कि इस Ebook को आप विभिन्न माध्यमों से प्रचारित-प्रसारित कीजिए। हमें आपकी प्रतिक्रियाओं का भी इंतजार रहेगा।
हेम पन्त (संकलन)
विनोद सिंह गड़िया (डिज़ाइन)
गढ़वाली पारम्परिक बालगीतों की ebook घुघूती बासूति भाग-2 यहाँ पढ़ें - 👇
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