Ghughuti Basuti-1 (Kumaoni) | घुघूती बासूती Ebook

Ghughuti Basuti-1 (Kumaoni)

बालगीत हम सबके शुरुआती जीवन के महत्वपूर्ण अंग हैं। लोरी में घुला लाड़-प्यार, त्यौहार के गीतों में रचे-बसे संस्कार और बालसखाओं के साथ खेल-खेल में गाये गए गीतों का उत्साह आजीवन हमारे साथ बना रहता है।

मेरी यादों में बसे ऐसे ही कुछ पारंपरिक बालगीत अपने दोनों बच्चों के साथ गुनगुनाते हुए मुझे महसूस हुआ कि इन गीतों को संकलित किया जाना चाहिए। फेसबुक के ग्रुप "कुमाउनी शब्द सम्पदा" में साथियों ने कुछ बालगीत उपलब्ध करवाए, उसके बाद मैने विभिन्न श्रोतों से गढ़वाली-कुमाउनी बोली के लगभग 70 बालगीत एकत्रित किए। मुझे लगता है कि यह इस काम की सिर्फ शुरुआत भर है, अभी हजारों ऐसे पारंपरिक बालगीत लोगों की स्मृतियों में जीवित हैं जिन्हें संरक्षित किया जाना है। पहाड़ी इलाके में पारंपरिक खेल भी थे, जो बच्चों रचनात्मक शारीरिक-मानसिक विकास के लिए जरूरी थे, वो भी समय के साथ भुला दिए गए हैं।
इस Ebook में संकलित उत्तराखंड के पारंपरिक बालगीतों से गुजरते हुए आपको महसूस होगा कि गीतों के माध्यम से बच्चों को अपने परिवेश, समाज, पर्यावरण और खेती-पशुपालन की जानकारी बड़ी सरलता से मिल जाती है। इन पारंपरिक बालगीतों की विषय-वस्तु की व्यापकता, रचनाशीलता और बच्चों के चारित्रिक विकास में इन गीतों की भूमिका एक गहन शोध का विषय हो सकता है। 

बहुत से साथियों ने इन पारंपरिक बालगीतों के संकलन में योगदान दिया, मैं उन सबका आभारी हूँ। इसी संकलन से "हल्लोरी" गीत लेकर कमल जोशी और हमारे अन्य साथियों ने मिलकर एक सार्थक लघुफिल्म बनाई, ये फ़िल्म YouTube पर उपलब्ध है। भाई विनोद गड़िया ने डिजाइन की जिम्मेदारी ली और इस Ebook को सुंदर रूप दिया, उनका भी धन्यवाद। 

सांस्कृतिक-सामाजिक संस्था "क्रिएटिव उत्तराखंड" का हमेशा प्रयास रहा है कि हमारी समृद्ध विरासत आने वाली पीढ़ियों तक सही रूप में हस्तांतरित होती रहे। उम्मीद है कि इस तकनीकी युग में Ebook के माध्यम से अपनी जड़ों से जुड़े रहने की यह कोशिश आप अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाएंगे, खासतौर से बच्चों तक।

"घुघुति बासुति - भाग 2" भी कुछ समय बाद आप सबके बीच होगा जिसमें गढ़वाल अंचल के पारंपरिक बालगीत होंगे। 

हेम पंत 

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