कुमाऊंनी भाषा कितनी समृद्ध है इसका अंदाजा यहाँ के कहावतों और मुहावरों से भी लगाया जा सकता है। ये कहावतें ऐसी हैं जो हमारे पुरखों से लेकर आज तक हम सभी अपनी सामान्य बोलचाल में प्रयोग करते आ रहे हैं। इनका भाव हमारे समाज को एक दिशा देते रहा है। ये कहावतें और मुहावरे यहाँ की संस्कृति, परम्परा, कृषि, मौसम, मानवीय व्यवहार आदि पर आधारित हैं। लेकिन बदलते युग में हमारी भाषा ये शब्द कहीं खो से गए हैं।
यहाँ कुछ रोचक कुमाउनी कहावतों और मुहावरों का संकलन भावी पीढ़ी के लिए कर रहे हैं। ये सभी हमने अपने बुजुर्गों को आम बोलचाल में कहते हुए सुना है। आप इन्हें पढ़ें और अन्य अपने परिवार जनों के भी पढ़ायें।
कुमाऊंनी भाषा में कहावतें और मुहावरे
भावार्थ : यहाँ कहावत जागेश्वर और बागेश्वर की महत्ता को दर्शाते हुये कही जाती है। कुमाऊँ में कहा जाता है यदि हमने देवताओं और इनके मंदिरों को देखना है तो जागेश्वर जाना चाहिए वहीं मेला देखना है तो बागेश्वर चले जायें। यहाँ हर साल माघ माह में उत्तरायणी का मेला लगता है, जिसका अपना अलग पौराणिक, आध्यात्मिक, ऐतिहासिक और व्यापारिक महत्व है।
भावार्थ : औषधीय उपयोग में आने वाले शतावर को पहाड़ में कैरू कहा जाता है, जो जेठ के महीने में फलता फूलता है। इस वक्त में शतावर का पौंधा काफी नाजुक और सुंदर हो जाता है। इसी प्रकार पौष माह में पर्वतीय क्षेत्र में पालक के पौधे भी पूरे यौवन पर होते हैं। कुमाऊंनी साहित्य में नव यौवना की तुलना पौष के पालक और जेठ के शतावर से की जाती है। राजुला मालू शाही की लोक गाथा में कहा गया है- पूषै की पालक जसी, सुनपता सौकैकी चेलि।
भावार्थ : पिता जी के जीवित रहने तक बेटी को दहेज़ यानि उपहार प्राप्त होते रहते हैं और माँ के जीवित रहने तक उसका मायके में आना-जाना रहता है।
भावार्थ : यह मुहावरा अपने अच्छे कर्म के बावजूद लोगों के गलत व्यवहार करने पर कहा जाता है।
सभी जगह अपना ही फायदे की बात करना।
अपने संसाधनों को हम धीरे-धीरे सोचसमझकर उपयोग में लायेंगे तो हम उसे अधिक समय तक उपयोग में ला सकते हैं , वहीं उसी चीज को हम एक ही समय में खाने के लिए बर्बाद कर देंगे तो वह भविष्य के लिए नहीं बच पायेगा।
जो व्यक्ति लालच में दूसरों की सम्पति हड़पना चाहते हैं वे अपनी सम्पति भी गँवा बैठते हैं यानी व्यक्ति अपनी सम्पति का भी आनंद नहीं ले सकते हैं।
जब हम घर से बाहर निकलेंगे, तभी हमें वास्तविक दुनियादारी का पता लगेगा।
अक्सर उम्र के हिसाब से हममें बुद्धिमत्ता नहीं होती है।
जहाँ कोई नियंत्रण नहीं होता है वहां अराजकता रहती है।
सभी जगह अपना भला बने रहना।
जो जैसा कर्म करेगा उसका फल कुछ समय बाद दिखने लगेगा।
बात किसी और व्यक्ति को कहीं लेकिन बुरा किसी अन्य व्यक्ति को लग गया।
यह मुहावरा दुःखी व्यक्ति को और नुकसान होने पर कहा जाता है।
बिना सोचे समझे काम प्रारम्भ करना।
(दिशा-जंगल जाने तक ही रास्ते को देखना। )
जरुरत पड़ने पर भी सामान को देखना।
(अरबी के पत्ते का पानी। )
क्षण भंगुर।
(दो दिन के महान मेहमान, तीसरे दिन से परेशानी। )
कुछ की समय तक आदर सत्कार होना।
(अच्छे -अच्छे मर गये, चूहे के बच्चे प्रधान।
अयोग्य व्यक्ति को कमान दे देना।
(कहाँ जो भट भूने, कहाँ हो चटकने की आवाज आई। )
कहाँ जो बात कही , कहाँ जो बात का असर हुआ।
अपनी चीज सभी को पसंद होती है।
(बनने वाली छाछ एकबार बार में ही तैयार हो जाती है वहीं जो छाछ न बनने वाली हो उसको सौ बार भी मथ लो वह नहीं बन पाती है। )
होने वाला काम एक बार में ही बन जाता है।
यह मुहावरा लापरवाही के लिए प्रयोग किया जाता है।
सावधानी रखने के बाद भी नुकसान होना।
शुरू से ही कमजोर हो जाना।
हर समय मनमुटाव रहना।
कुमाऊँनी भाषा में मुहावरे और लोकोक्तियाँ
बाव क हाथ खज्यै, बुड़क खाप खज्यै।
समय के हिसाब से बदलाव आना।
गुड़ अन्यार में ले मिठ, उज्याव में लड़ मिठ
( गुड़ अँधेरे में भी मीठा, उजाले में भी मीठा)
इंसान के अच्छे गुण हर जगह दिखाई देते हैं।
दाद राठ चाक में तो हामी पाख में
भाई लोग घर के एक प्रतिष्ठित स्थान में, हम छत में।
इर्ष्या से चलते दिखावा करना।
जस ब्यु उस बालड़।
(जैसा बीज वैसी बाली।)
माता-पिता में जिस प्रकार के गुण होते हैं वही गुण उनकी सन्तान में भी होते हैं।
न पटियांक गोपी बामण।
(कोई नहीं मिला तो गोपी बामण ही सही)
नजदीक के आदमी की कोई इज्जत नहीं होती, उसे सिर्फ उस समय काम में लाया जाता है जब कोई भी आदमी काम करने को नहीं मिलता है।
जां कुकुड़ नै हुन वां रात नै ब्यानी ?
(जहाँ मुर्गा नहीं होता वहां भोर नहीं होती ?)
किसी भी व्यक्ति या वस्तु के बिना कोई भी कार्य हो सकता है।
Famous Kumaoni Proverbs and Idioms
अघाइनाक बामन, भैसेन खीर
पेट भरा हो तो ब्राह्मण को खीर से भैंस की बदबू आती है।
जाँ स्वीड़ न अटान, वाँ संपव।
( जहाँ सुई नहीं आती, वहां सम्बल रखना )
किसी भी चीज को उसके स्थान पर न रखकर दूसरे जगह जोर जबरदस्ती कर रखना।
चार खै ग्याय चाखुड, फंस पड़ी भ्याकुड़
( चारा तो कोई दूसरी चिड़िया (उसका नाम चाखुड़ है ) खा गयी पर फांस में फंस पड़ी कोई दूसरी चिड़िया (उसका नाम भिकुड़ी)- भिकुड़ी=उत्तराखंड में पायी जानी वाली एक चिड़िया।
भावार्थ : निर्दोष का फंस जाना।
भै भरौस धनकि आड़।
(भाई का भरोसा और धन की आड़ )
भाई का साथ धन के समान है। जिस प्रकार धन होने पर व्यक्ति कोई किसी चीज की चिंता नहीं होती है उसी प्रकार एक भाई का साथ होने पर वह व्यक्ति किसी भी शक्ति को परास्त कर सकता है।
पुस्याण मरि पछ्याँण तरि।
(बुआ मरी, जानपहचान छूटी। )
एक समय के बाद रिश्ता तोड़ देना।
गौं तिरूँण, मो न तिरूँन।
(गांव छोड़ना, परिवार न छोड़ना। )
यह कहावत अपनी छोटी वस्तुओं को अपने आस पड़ोस में मिल बांटकर खाने को कहा जाता है। चाहे ये वस्तुएं पूरे गांव वालों को न दे पायें लेकिन अपने पड़ोस के लोगों को जरूर देना चाहिए, जिससे मेलजोल बना रहे।
कब ब्याल थोरी, कब होलि खोरि।
(कब ये भैंस दूध देने वाली होगी, कब हमारी अच्छी किस्मत होगी।
परिणाम का लम्बा इन्तजार करना।
अपनत्व को न समझना।
यह थे उत्तराखंड (कुमाऊँनी भाषा में ) की कुछ प्रसिद्ध और आम कहावतें और मुहावरे। इनको आप भी जरूर अपनी बातचीत और उदाहरण देते हुए उपयोग में लायें ताकि आने वाली पीढ़ी के लिए भी ये जीवित रहें। भूल चूक एवं संसोधन के लिए कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें।











