इतिहास पर्यटन सामान्य ज्ञान ई-बुक न्यूज़ लोकगीत जॉब लोक कथाएं लोकोक्तियाँ व्यक्ति - विशेष विदेश राशिफल लाइफ - साइंस आध्यात्मिक अन्य

Kilmoda किल्मोड़ा – हिमालय की एक औषधीय प्रजाति।

On: October 13, 2025 11:09 PM
Follow Us:
किल्मोड़ा (Kilmoda) उत्तराखंड के 1400 से 2000 मीटर की ऊंचाई पर मिलने वाला एक औषधीय प्रजाति है। इसका बॉटनिकल नाम ‘बरबरिस अरिस्टाटा’ है। यह प्रजाति दारु हल्दी या दारु हरिद्रा के नाम से भी जानी जाती है। इसका पौधा दो से तीन मीटर ऊंचा होता है। मार्च-अप्रैल के समय इसमें फूल खिलने शुरू होते हैं। इसके फलों का स्वाद खट्टा-मीठा होता है। किल्मोड़ा की जड़, तना, पत्ती से लेकर फल तक का इस्तेमाल होता है। मधुमेह (diabetes) में किल्मोड़ा की जड़ बेहद कारगर होती है। इसके अलावा बुखार, पीलिया, शुगर, नेत्र आदि रोगों के इलाज में भी ये फायदेमंद है। होम्योपैथी में ‘बरबरिस’ नाम से दवा बनाई जाती है। दारू हल्दी की जड़ से अल्कोहल ड्रिंक बनता है।
 
kilmora-fruit
kilmoda

 

किल्मोड़ा के पौधे में एन्टी डायबिटिक, एन्टी इंफ्लेमेटरी, एन्टी ट्यूमर, एन्टी वायरल और एन्टी बैक्टीरियल तत्व पाए जाते हैं। डायबिटीज के इलाज में इसका सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा खास बात ये है कि किल्मोड़ा के फल और पत्तियां एन्टीऑक्सिडेंट कही जाती हैं। एन्टीऑक्सीडेंट यानी कैंसर की मारक दवा। किल्मोड़ा के फलों के रस और पत्तियों के रस का इस्तेमाल कैंसर की दवाएं तैयार करने के लिए किया जा सकता है।  पोषक एवं  खनिज तत्वों की बात करें तो इसमें प्रोटीन 3.3 प्रतिशत, फाइबर 3.12 प्रतिशत, कॉर्बोहाइडे्रट्स 17.39 मिग्रा प्रति सौ ग्राम, विटामिन-सी 6.9 मिग्रा प्रति सौ ग्राम व मैग्नीशयम 8.4 मिग्रा प्रति सौ ग्राम पाया जाता है।किल्मोड़ा से एक प्राकृतिक रंग भी तैयार किया जाता था जिसका इस्तेमाल कपड़ों के रंगने में होता था। 

 

किल्मोड़ा की प्रजाति भारत के अलावा श्रीलंका, नेपाल, भूटान, चीन आदि देशों में भी पाई जाती है। उत्तराखण्ड में इसे किल्मोड़ा, किल्मोड़ी और किन्गोड़ के नाम से जानते हैं। यहाँ किल्मोड़ा की करीब 22 प्रजातियां पाई जाती है। जो घरों के आसपास खाली जगह  या खेतों के आसपास और जंगलों में पाई जाती है। अप्रैल से जून माह के बीच इसमें फल लगते हैं। कच्चे फलों का रंग हरा होता है जो पकने के बाद गहरे नीले रंग के हो जाते हैं। खट्टे-मीठे स्वाद वाले इन फलों को लोग बड़े चाव से खाते हैं। पक्षियों का भी ये मन पसंद आहार है। जंगलों में पकने वाले इस प्रजाति के फलों को गुड़ुम कहते हैं। फलों का आकार सामान्य किल्मोड़ा के फलों के अपेक्षा बड़ा होता है। 

उत्तराखण्ड में लोग किल्मोड़ा के जड़ों और तनों का उपयोग आयुर्वेदिक दवाओं के रूप में प्राचीनकाल से करते आये हैं। किल्मोड़ा के औषधीय गुणों को देखते हुए कुमाऊं विश्वविद्यालय के बॉयोटेक्नोलॉजी विभाग ने इस पर शोध किये और उन्होंने एक मधुमेह निवारक (एन्टीडायबिटिक) दवा तैयार की। सफल परीक्षण के बाद अमेरिका के इंटरनेशनल पेटेंट सेण्टर से पेटेंट भी हासिल किया। कुमाऊं विश्वविद्यालय का ये पहला इंटरनेशनल पेटेंट है।

 

कुछ समय पहले तक उत्तराखण्ड के पहाड़ी इलाकों में काफी मात्रा में उपलब्ध होता था। लोग इसे सिर्फ एक कंटीली झड़ी के रूप में पहचानते थे। घर पर सामान्य इलाज, जलाने और जंगली जानवरों के बाढ़ हेतु इसका उपयोग होता था। अत्यधिक दोहन और संरक्षण के अभाव में आज किल्मोड़ा की प्रजाति विलुप्ति के कगार पर है। स्थानीय प्रयास और सरकार के सहयोग से लोगों को किल्मोड़ा के संरक्षण और संवर्द्धन काम करना चाहिए। इसके औषधीय गुण रोजगार का जरिया बन सकते हैं। 

 

यहाँ भी पढ़ें :

Vinod Singh Gariya

ई-कुमाऊँ डॉट कॉम के फाउंडर और डिजिटल कंटेंट क्रिएटर हैं। इस पोर्टल के माध्यम से वे आपको उत्तराखंड के देव-देवालयों, संस्कृति-सभ्यता, कला, संगीत, विभिन्न पर्यटक स्थल, ज्वलन्त मुद्दों, प्रमुख समाचार आदि से रूबरू कराते हैं।

Join WhatsApp

Join Now

Join Telegram

Join Now

और पढ़ें

Leave a Comment