डिजिटल और AI के इस युग में उत्तराखंड के विभिन्न हिल स्टेशनों, पर्यटक स्थलों, धार्मिक स्थलों, नौले-धारों के आसपास की रंगीन दीवारें अपनी सुंदरता से हर किसी को टकटकी लगाए रखने पर मजबूर कर रही हैं। ये टेक्नोलॉजी से तैयार किये गए कोई पेंटिंग्स नहीं, बल्कि रंग और ब्रश से उकेरी गई लोकसंस्कृति की जीवंत झलकियाँ हैं, जिन्हें एक युवा कलाकार अपनी कल्पना और हुनर से साकार कर रहा है। सोशल मीडिया से लेकर सड़कों तक, इन वॉल पेंटिंग्स की चर्चा हर जगह है। आखिर कौन है यह चित्रकार, जो अपने ब्रश और रंगों से पहाड़ की परंपराओं को फिर से जीवन दे रहा है?
यह हैं मुकुल बडोनी, उत्तराखंड स्थित उत्तरकाशी जिले के प्रतिभाशाली युवा कलाकार। मुकुल वही हैं जो पहाड़ की विलुप्त होती परंपराओं, लोककथाओं, देवी-देवताओं और सांस्कृतिक प्रतीकों को अपनी कला के माध्यम से दीवारों पर जीवंत कर रहे हैं।
मुकुल बडोनी का जन्म कांदला बड़ेथी चिन्यालिसौड़ के एक साधारण परिवार में हुआ। उनके पिता एक निजी विद्यालय में प्रधानाचार्य हैं और माता गृहिणी हैं। बचपन से ही मुकुल को रंगों से बेहद लगाव था। उन्होंने 12वीं कक्षा विज्ञान विषय से उत्तीर्ण की, लेकिन मन उनका हमेशा कला में रमा रहा। स्नातक के बाद उन्होंने चित्रकला विषय में स्नातकोत्तर किया और फिर बी.एड. की डिग्री प्राप्त की।
मुकुल ने उत्तराखंड के विभिन्न जिलों देहरादून, उत्तरकाशी, हरिद्वार, हर्षिल, ऋषिकेश, अल्मोड़ा, बागेश्वर, चम्पावत आदि स्थानों पर अपनी कला की छाप छोड़ी है। उनकी बनाई पेंटिंग्स न केवल स्थानीय लोगों को आकर्षित करती हैं, बल्कि पर्यटकों के लिए भी ‘सेल्फी पॉइंट’ बन रही हैं। उनकी चित्रकारी में रंगों का अद्भुत मेल और पहाड़ी संस्कृति की झलक देखने को मिलती है, जो देखने वालों को मंत्रमुग्ध कर देती है।
उनकी कला में पहाड़ का लोकजीवन, लोकपर्व, नृत्य, लोकदेवता, पारंपरिक परिधान और ग्रामीण जीवन की सुंदर झलक देखने को मिलती हैं। उनके ब्रश के हर स्ट्रोक में एक सन्देश छिपा होता है, हर रंग में कुछ नया अहसास होता है जो उत्तराखंड के लोक को जीवंत कर देती है।
आज मुकुल बडोनी (Mukul Badoni) न केवल एक अच्छे चित्रकार के रूप में जाने जाते हैं, बल्कि पहाड़ के युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत भी बन चुके हैं। उन्होंने यह सिद्ध कर दिखाया है कि जीवनयापन का साधन केवल नौकरी नहीं, बल्कि अपने भीतर के हुनर को पहचानना और उसे निखार कर समाज से जोड़ना भी उतना ही महत्वपूर्ण है।
मुकुल कहते हैं – “मेरा मकसद केवल दीवारों को सजाना नहीं, बल्कि उन पर हमारी जड़ों, हमारी संस्कृति और हमारी पहचान को उकेरना है।”
उनकी यह सोच और कला उत्तराखंड के लोकजीवन को नई पहचान दे रही है। मुकुल बडोनी जैसे कलाकार न केवल दीवारों को रंग कर नयी जान डाल रहे हैं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए अपनी संस्कृति को सहेजने का सुंदर माध्यम भी बना रहे हैं।
मुकुल अपनी कलाकृतियों को सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स पर भी डालते हैं। उनकी एक कलाकृति से प्रभावित होकर मीनाक्षी रावत ने उनकी पोस्ट पर लिखा है –
“बहुत ही सुंदर और अद्भुत तरीके से पहाड़ की नारी के बारे में अपनी चित्रकारी से आपने एक पहाड़ का जीवन किस तरीके से पहाड़ की महिलाये रोजमर्रा की जिंदगी को बिताती है उसका समक्ष प्रमाण आपके चित्रकारी में देखने को मिलता है। क्योंकि एक चित्रकार जब कोई पेंटिंग बनाता है तो उसे महसूस करके उसका चित्रण सबके समक्ष रखता है यह खूबी आप में समयी हुई है। यही एक चित्रकार का पूर्ण परिचय होता है । जिसको किसी के समक्ष परिचय की आवश्यकता नहीं होती वह अपनी कलाकारी से ही दुनिया को जीत सकता है यही शुभकामनाएं आपको अपनी कला से उत्तराखंड का नाम ऊंचा करो❤❤👏👏👌 “
Mukul Badoni की कुछ खूबसूरत कलाकृतियाँ














