अपने गीतों से सदैव अमर रहेंगे प्रहलाद मेहरा।

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उत्तराखंड के लोकप्रिय लोक गायक प्रहलाद सिंह मेहरा का हृदयगति रुकने से निधन हो गया है। उनके आकस्मिक निधन से उनके प्रशंसकों में शोक की लहर है। अपने लोक गीतों से पहाड़ के संगीत को नया जीवन देने वाले श्री मेहरा के यूँ चले जाने से उत्तराखंड के संगीत जगत को एक अपूरणीय क्षति हुई है। 

प्राप्त जानकारी के अनुसार लोकगायक प्रहलाद मेहरा को बुधवार को हार्ट अटैक आया और हल्द्वानी के एक निजी हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया। वहीं उन्होंने अंतिम साँस ली। उनके यूँ ही अचानक चले जाने से उनके प्रशंसक स्तब्ध हैं। 

प्रहलाद सिंह मेहरा उत्तराखंड के ऐसे गायक थे जिन्होंने यहाँ की संस्कृति, सभ्यता, लोक जीवन को अपने गीतों के माध्यम से सभी तक पहुँचाया था। सामाजिक चेतना के लिए कई गीत गाये। भ्रूण हत्या पर उन्होने 'गर्भ भितेर बेटी ना मार'' जैसे गीतों के माध्यम से समाज को इस जुल्म के बारे में मार्मिक ढंग से समझाया। वहीं प्रदेश के पर्यटक स्थलों की खूबसूरती को अपने गीतों के माध्यम से लोगों तक पहुँचाया। वे सैदव समाज के लिए समर्पित रहे। विभिन्न कार्यक्रमों में सहभागिता कर वे हमेशा अपनी उपस्थिति समाज में दर्ज कराते रहे। 

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प्रहलाद मेहरा  (Prahlad Mehra) का जन्म 4 फरवरी 1971 को पिथौरागढ़ जिले के मुनस्यारी स्थित चामी भैंसकोट गांव में हुआ था। माता का नाम लाली देवी और पिता का नाम हेम सिंह के घर जन्मे प्रहलाद बचपन से ही संगीत के प्रति लगाव रखते थे। स्वगींय गोपाल बाबू गोस्वामी के गीतों से प्रभावित होकर उन्होंने संगीत साधना की और लोगों के दिलों में अपना स्थान बनाया। 

उनके द्वारा गाये गीत 'पहाड़ की चेली ले', चांदी बटना कुर्ती कॉलर में, ओ हिमा जाग, ऐजा मेरा दानपुरा, ऐ जा रे म्यर मुन्स्यार, पंछी उड़ी जानी घोल उसै रौंछ, म्यर हीरु, जलेबी डाब, रंगभंग, रुमा बिजुली झम, घाम छाया ले, छक्क छिना जैसे सैकड़ों हिट गाने दिए। इनके सभी गीत लोक जीवन को प्रभावित करते रहे हैं। उन्हें वर्ष 1989 में आकाशवाणी द्वारा ए-ग्रेड कलाकार का दर्जा दिया गया। 

53 वर्षीय प्रह्लाद मेहरा ने इस छोटे से समय में कुमाऊंनी संगीत को जो नयी ऊंचाई दी, उसे कोई नहीं भुला सकता। भले ही वे आज हमारे बीच नहीं रहे लेकिन उनके गीत सदा उन्हें अमर बनाएंगे। ई-कुमाऊँ डॉट कॉम उन्हें अपनी अश्रुपूरित श्रद्धांजलि अर्पित करता है।