मुंशी हरिप्रसाद टम्टा-उत्तराखण्ड के दलित चिंतक और समाज सुधारक।

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Munshi Hariprasad Temta


हर वर्ष 26 अगस्त को उत्तराखण्ड के दलित चिंतक और समाज सुधारक 'मुंशी हरिप्रसाद टम्टा' जी की जयंती मनाई जाती है। उत्तराखण्ड के और खास कुमाऊँ के दलित समाज के लिये जो काम उन्होंने किये, वह वास्तव में बहुत साहसिक और अतुलनीय थे। उनका जन्म अल्मोड़ा में 26 अगस्त, 1887 को एक ताम्रकार परिवार में हुआ था। अपने पिता गोविंद प्रसाद व माता गोविंदी देवी की प्रथम संतान थे। उनके अतिरिक्त एक बहन कोकिला और भाई ललित था। बचपन में पिता का साया सिर से उठ जाने पर उनके मामा ने उनका पालन पोषण किया।

मुंशी हरिप्रसाद टम्टा की देन है शिल्पकार और आर्य जातिनाम

बचपन से ही उन्होंने छुआछूत, अस्पृश्यता को भोगा और उसे दूर करने के बारे में सोचा। इस समस्या का हल उन्हें शिक्षा में ही लगा, उनका मानना था कि कोई भी समाज तब प्रगति कर सकता है, जब वह शिक्षित हो। इसी क्रम में उन्होंने हाईस्कूल तक शिक्षा ली और उर्दू तथा फारसी में मुंशी की उपाधि ली। उसके बाद वह समाज की सेवा में लग गए। 1913 में वह अल्मोड़ा नगरपालिका के मेंबर चुने गए, लेकिन तत्कालीन समाज को यह रास नहीं आया कि कोई हरिजन उनकी बराबरी करे, लेकिन टम्टा जी ने हार नहीं मानी। वह लगातार अपने समाज की भलाई के लिये प्रयासरत रहे। इस बीच वह लाला लाजपतराय जी के सम्पर्क में आये और 1913 में लाला जी को अल्मोड़ा बुलाकर उन्होंने 50-51 अलग जातीय नामों में बंटे दलित समाज को 'शिल्पकार' नाम तथा 'आर्य' जातिनाम घोषित करवाया।

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बच्चों को पढ़ाने और नाम के आगे राम, लाल, चंद्र, प्रसाद लिखने का आह्वान 

इसी बीच उन्होंने दलित समाज को जनेऊ पहनाकर दीक्षित किया और अंग्रेज शासकों से मिलकर जनगणना में सभी दलित जातियों के अलग नामों की जगह एक शब्द शिल्पकार करवाने में वह सफल हुए और 1931 की जनगणना से उत्तराखण्ड के दलितों की जाति के कालम में शिल्पकार लिखा जाने लगा। इससे पहले उन्होंने 1925 में अल्मोड़ा में दलित समाज का एक बड़ा सम्मेलन किया, जिसमें उन्होंने बच्चों को पढ़ाने और उनके नाम के आगे राम, लाल, प्रसाद, चन्द्र जैसे मध्य नाम लिखवाने का आह्वान किया। 

 

दलित समाज की भर्ती शुरू करवाई 

मुंशी हरिप्रसाद टम्टा ने दलित समाज के लिए 150 से अधिक स्कूल खुलवाये क्योंकि सामान्य स्कूलों में दलित बच्चों को छुआछूत झेलनी होती थी। अंग्रेजों ने उनकी समाजसेवा को देखते हुए उन्हें 1935 में रायबहादुर की उपाधि दी और स्पेशल मजिस्ट्रेट बनाया गया। उन्हीं के प्रयासों से 1935 में चपरासी, पुलिस में सिपाही, अर्दली, माली में दलितों की भर्ती शुरू हुई और इसी क्रम में 1938 से उत्तराखण्ड के दलित समाज के लोगों की सेना में भर्ती भी शुरू हुई। 

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समता अख़बार का प्रकाशन और निर्विरोध विधायक 

मुंशी हरिप्रसाद टम्टा ने 1934 में 'समता' नाम से एक अखबार भी शुरू किया और 1936 में वह गोंडा जिले से संयुक्त प्रांत विधान सभा के लिए निर्विरोध विधायक भी निर्वाचित हुए। सदन में उन्होंने दलितों के हितों की लगातार आवाज उठाई, इस बीच वह डॉ आंबेडकर के भी बहुत करीब आये और पूना पैक्ट में भी उनकी सक्रिय भागीदारी रही। 1945 से 1952 तक वह अल्मोड़ा नगरपालिका के अध्यक्ष रहे और जिला परिषद में भी चुने गए।

इसके अलावा टम्टा जी ने विधवा महिलाओं के उन्मूलन के लिए भी बहुत कार्य किये, नगरपालिका में रहते उन्होंने महिलाओं के लिए सिलाई आदि के वोकेशनल ट्रेनिंग सेंटर खुलवाये। 

मुंशी हरिप्रसाद टम्टा केवल एक नाम नहीं, बल्कि एक आंदोलन थे। उनका जीवन और कार्य उत्तराखण्ड के दलित समाज के लिए अस्मिता, शिक्षा, समानता और संगठन का संदेश है। वे एक ऐसे युगद्रष्टा थे, जिन्होंने विषम परिस्थितियों में भी अपनी आस्था और संकल्प को टूटने नहीं दिया। 

 

लेख : स्वर्गीय श्री पंकज सिंह महर 

विनोद सिंह गढ़िया

ई-कुमाऊँ डॉट कॉम के फाउंडर और डिजिटल कंटेंट क्रिएटर हैं। इस पोर्टल के माध्यम से वे आपको उत्तराखंड के देव-देवालयों, संस्कृति-सभ्यता, कला, संगीत, विभिन्न पर्यटक स्थल, ज्वलन्त मुद्दों, प्रमुख समाचार आदि से रूबरू कराते हैं। facebook youtube x whatsapp

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