पर्वतों का पहरेदार
पहाड़ों के तकरीबन हर घर में एक पहरेदार होता है, जो भेड़, बकरी, गाय जैसे पशुओं की रक्षा से लेकर घर की सुरक्षा का जिम्मा उठाता है। यह केवल कुत्ता नहीं होता, यह परिवार का सदस्य होता है- आवश्यकता पर जान की बाजी लगा देने वाला योद्धा। मौका पड़ने पर यह न सिर्फ इंसानों से, बल्कि तेंदुए जैसे खतरनाक जंगली जानवरों से भी लड़ जाता है। कई बार स्थानीय लोगों ने ऐसे दृश्य देखे हैं जब एक कुमाऊंनी कुत्ता अपने इलाके में आए गुलदार से सीना तानकर भिड़ गया हो।
इतिहास में दर्ज है इसका गौरव
बहुत से लोग इसे एक सामान्य पहाड़ी कुत्ता समझते हैं, लेकिन कुमाऊं मास्टिफ की कहानी इससे कहीं ज्यादा रोचक है। विकिपीडिया के अनुसार यह नस्ल 300 ईसा पूर्व सिकंदर महान के साथ भारत आई थी। माना जाता है कि यह साइप्रस डॉग (Cyprus Dog) से उत्पन्न हुआ है, जिसे कुमाऊं के लोग ‘साइप्रो कुकुर’ के नाम से जानते हैं।
एक दुर्लभ और विलुप्त होती नस्ल
आज के समय में कुमाऊं मास्टिफ एक अत्यंत दुर्लभ नस्ल बन चुकी है। अनुमान है कि भारत में केवल 150 से 200 कुत्ते ही बचे हैं। यह बात चिंताजनक है कि एक ऐसा बहादुर और जांबाज कुत्ता जो कभी हर घर का हिस्सा था, आज संरक्षण की बाट जोह रहा है।
शारीरिक बनावट और विशेषताएं
कुमाऊं मास्टिफ बड़े आकार के कुत्तों की नस्लों में गिना जाता है। इसकी खासियतें कुछ इस प्रकार हैं:
- शरीर गठीला और मांसल होता है।
- सिर बड़ा और गर्दन अत्यधिक मजबूत।
- औसत ऊंचाई 28 इंच तक होती है।
- शरीर पर अक्सर सफेद निशान दिखाई देते हैं।
- स्वभाव से अत्यधिक चौकस, निडर और वफादार।
यह एक वर्किंग डॉग है, जो कठिन पहाड़ी परिस्थितियों में भी सतर्कता और ताकत से अपने काम को अंजाम देता है।
अन्य नस्लों के बीच गुम होती पहचान
जब कुत्तों की नस्लों की बात होती है तो आमतौर पर जर्मन शेफर्ड, लेब्राडोर, डाबर मैन, रॉटवीलर आदि का नाम लिया जाता है। लेकिन बहुत कम लोग कुमाऊंनी मैस्टिफ को जानते हैं- जबकि यह नस्ल न केवल ताकत और वफादारी में बराबरी करती है, बल्कि कठिन भूगोल में अपनी उपयोगिता के लिए उससे कहीं आगे है।
संरक्षण की आवश्यकता
कुमाऊं मास्टिफ का संरक्षण सिर्फ एक कुत्ते की नस्ल को बचाने की बात नहीं है, यह कुमाऊं की संस्कृति, परंपरा और जीवनशैली को बचाने का प्रयास है। आज जरूरत है कि इस नस्ल के संरक्षण के लिए:
- जागरूकता अभियान चलाए जाए।
- इसे पंजीकृत और मान्यता प्राप्त नस्ल घोषित किया जाए।
- सरकार और संस्थाएं इस पर शोध और पुनर्वास की पहल करें।
- पहाड़ के युवाओं को इसके महत्व से अवगत कराया जाए।
निष्कर्ष: एक विरासत जिसे संजोना है
Kumaon Mastiff केवल एक कुत्ता नहीं, बल्कि एक संस्कृति का प्रहरी है। यह पहाड़ के लोगों की जिजीविषा, जीवटता और प्रकृति के साथ समरसता का प्रतीक है। ऐसे विरासत को संजोना हमारा दायित्व बनता है।
अगर आपके आस-पास कहीं यह बहादुर कुत्ता हो, तो उसे केवल एक जानवर न समझें – वह एक इतिहास है, जो अब भी हमारे बीच साँस ले रहा है।
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