दैंणा होया खोली का गणेशा स्तुति के लिरिक्स एवं भावार्थ।

Daina Hoya Kholi Ka Ganesha lyrics
Daina Hoya Kholi Ka Ganesha lyrics

'दैंणा होया खोली का गणेशा' गीत उत्तराखंड के प्रमुख श्रीगणेश स्तुति में से एक है। इस स्तुति में भगवान गणेश, नारायण, भुम्याल आदि देवताओं से प्रसन्न होने, प्रकट होकर हमारे कार्यों को सुफल बनाने के लिए अर्चना की जाती है। उत्तराखंड में यह गीत विभिन्न उत्सवों, मंगल कार्यों, समारोहों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के शुभारम्भ में गाया जाता है।  Daina Hoya Kholi Ka Ganesha lyrics इस प्रकार हैं -

दैंणा होया खोली का गणेशा स्तुति के बोल 

दैंणा होया खोली का गणेशा हे, दैंणा होया मोरी का नरैण हे। 
दैंणा होया खोली का गणेशा हे, दैंणा होया मोरी का नरैण हे। 

दैंणा होया भूमि का भुम्याला हे,  दैंणा होया  पंचनाम देवा हे। 
दैंणा होया भूमि का भुम्याला हे,  दैंणा होया  पंचनाम देवा हे। 

दैंणा होया खोली का गणेशा हे, दैंणा होया मोरी का नरैण हे, 
दैंणा होया खोली का गणेशा हे, दैंणा होया मोरी का नरैण हे। 

दैंणा होया नौखोली का नाग हे,  दैंणा होया नौखंडी नरसिंघा हे। 
दैंणा होया नौखोली का नाग हे, दैंणा होया नौखंडी नरसिंघा हे। 

दैंणा होया खोली का गणेशा हे, दैंणा होया मोरी का नरैण हे। 
दैंणा होया खोली का गणेशा हे, दैंणा होया मोरी का नरैण हे। 

दैंणा होया का अर्थ 

उत्तराखंड की गणेश वंदना में "दैंणा होया" का अर्थ है - आप प्रसन्न हों, प्रकट हों और आपकी दया दृष्टि हम पर बनी रहे और इस स्तुति में 'खोली का गणेशा', 'मोरी का नरैण , 'भूमि का भुम्याल' आदि पंचनाम देवों से प्रसन्न होने की कामना की जाती है। 

  • खोली का गणेश  - उत्तराखंड के परंपरागत घरों का प्रवेश द्वार, जो सुन्दर नक्काशी युक्त लकड़ी का बना होता है और पत्थर की सीढ़ियां बनी होती हैं। इसी प्रवेश द्वार को 'खोली' कहा जाता है। इस खोली के शीर्ष में भगवान गणेश की आकृति लकड़ी में उकेरी रहती है। इन्हीं को 'खोली का गणेश' कहा जाता है। 

  • मोरी का नरैण - पहाड़ के परंपरागत घरों के प्रवेश द्वार को 'खोली' कहा जाता है और इसके छज्जों (खिड़कियों) को 'मोरी' कहा जाता है। इन छज्जों में भी खूबसूरत नक्काशी के साथ भगवान नारायण (विष्णु) की आकृति उकेरी रहती हैं। अपने घर में विराजमान देव को याद करते हुए 'मोरी का नरैण' कहा गया है। 

  • भूमि का भुम्याल - उत्तराखंड के लगभग हर गांव में भुम्याल देवता को पूजा जाता है। ये देव भूमि के देवता कहे जाते हैं। इसीलिये इनका नाम 'भुम्याल', 'भुम्याव','भूम्या' आदि दिया गया है। मान्यता है जब धारे -नौलों का पानी सूखने लगता है, सूखे की हालात होने लगते हैं या क्षेत्र में रोग-व्यथाएँ आने लगते हैं। तब सारे गांव वाले मिलकर भुम्याल देवता की पूजा कर इन मुश्किल हालातों से पार पाते हैं। 


विनोद सिंह गढ़िया

ई-कुमाऊँ डॉट कॉम के फाउंडर और डिजिटल कंटेंट क्रिएटर हैं। इस पोर्टल के माध्यम से वे आपको उत्तराखंड के देव-देवालयों, संस्कृति-सभ्यता, कला, संगीत, विभिन्न पर्यटक स्थल, ज्वलन्त मुद्दों, प्रमुख समाचार आदि से रूबरू कराते हैं। facebook youtube x whatsapp

Previous Post Next Post

نموذج الاتصال