सुकुंडा ताल: धार्मिक, पौराणिक मान्यताएं और पर्यटन की संभावनाएं।

Sukunda Tal Bageshwar
View of Sukunda Tal


उत्तराखंड, बागेश्वर जनपद में कपकोट तहसील के पोथिंग गांव की खूबसूरत पहाड़ी पर स्थित "सुकुंडा ताल" अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए जाना जाता है। इस स्थल से चारों दिशाओं में नजर आने वाले खूबसूरत दृश्य यहाँ आने वाले हर प्राणी को अपनी ओर आकर्षित करती हैं। सुकुण्डा ताल को स्थानीय लोग एक पवित्र कुण्ड के रूप मानते हैं। मान्यता है कि हर दिन भोर में देवी-देवता यहाँ स्नान हेतु आते हैं। 

समुद्रतल करीब 5000 फ़ीट की ऊँचाई पर स्थित है "सुकुंडा ताल" (Sukunda Tal) की लम्बाई 134 मीटर, प्रथम सिरे से चौड़ाई 61 मीटर और द्वितीय सिरे से चौड़ाई 19 मीटर है। इस ताल में वर्षभर पानी रहता है। यहाँ के अनवाल और बुजुर्ग लोग बताते हैं जैसे ही सुकुण्डा ताल का पानी गर्मियों में सूखने लगता है वैसे ही यहाँ बारिश हो जाती है और ताल में पुनः पानी भर जाता है। ताल चारों ओर से बाँज, बुरांश, रेयाज, मेहल आदि के जंगलों से आच्छादित है। 

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धार्मिक मान्यताएं: 

उत्तराखण्ड के प्रमुख कुण्डों में से एक सुकुण्ड यानि सुकुंडा स्थानीय लोगों द्वारा पूजनीय है। इस कुण्ड के जल को लोग गंगाजल समान मानते हैं। लोगों का मानना है कि भोर में इस कुण्ड में देवी-देवता स्नान हेतु आते हैं। इसीलिये लोग इस कुण्ड तक सूर्योदय होने के बाद ही जाते हैं। सुकुंडा ताल में या उसके आसपास नहाना, धोना पूर्णतया वर्जित है। स्थानीय लोग यहाँ के नियम और मान्यतानुसार इस ताल के जल का उपयोग करते हैं। 

पौराणिक मान्यताएं: 

सुकुंडा ताल को लोग महाभारत काल से भी जोड़कर देखते हैं। पांडवों ने 12 वर्ष के वनवास के बाद एक वर्ष के अज्ञातवास के दौरान पांडुस्थल से बीहड़ जंगल पार करते हुए सुकुंडा की ओर आये थे। अत्यधिक प्यास से व्याकुल पांडवों को जब दूर-दूर तक पानी का नामोनिशान नहीं मिला तो भीम ने अपनी गदा से इस पहाड़ी पर प्रहार किया और कुण्ड का निर्माण कर डाला। इसी कुण्ड के जल से पांडवों ने अपनी प्यास बुझाई। 

आज भी सुकुंडा ताल का पानी लाखों जीवों की प्यास शांत कर रहा है, जिनमें जंगली जीव, पंछी, मवेशियां और मनुष्य शामिल हैं। 

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पर्यटन की दृष्टि से सुकुंडा ताल:

बागेश्वर जिले के प्रमुख पर्यटक स्थलों में शामिल सुकुण्डा ताल और इसके आसपास का क्षेत्र अपने प्राकृतिक सौंदर्य के कारण लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है। आकाश का प्रतिबिम्ब बनाता ताल यूँ नजर आता है मानो धरती पर आकाश उतर आया हो। कुछ समय ताल के किनारे बिताकर आप इसे निहार सकते हैं। हवा के वेग से ताल में उत्पन्न तरंगें बड़ी मनोहारी लगती हैं। 

अत्यधिक ऊंचाई पर स्थित होने के कारण यहाँ से सम्पूर्ण हिमालय पर्वत श्रृंखलाओं के दर्शन साफ-साफ किये जा सकते हैं। इसके अलावा रात को यहाँ से कुमाऊँ और गढ़वाल के विभिन्न शहरों की टिमटिमाती रोशनी दर्शनीय होती है। प्रकृति प्रेमियों को यह स्थल स्वर्ग की अनुभूति कराता है। ताल के आसपास सरसराती हवा यहाँ पहुंचने वाले हर प्राणी को रोमांच और स्फूर्ति से भर देती है। 

सुबह और शाम के समय सुकुंडा ताल में पानी पीने के लिए सैकड़ों की संख्या में पहुँचने वाले भेड़-बकरियों का आवागमन हर रोज होता है। जो यहाँ पहुँचने वाले पर्यटकों के लिए किसी रोमांच से कम नहीं है। 

सुकुंडा ताल तक पहुँचने के लिए पर्यटकों को कम से कम 5 से 13 किलोमीटर का पैदल रास्ता तय करना होता है। इस मार्ग में पर्यटकों को प्रकृति से रूबरू होने का सौभाग्य प्राप्त होता है। बसंत के मौसम में यहाँ पहुँच पाए तो बुरांश के जंगल अपनी खूबसूरती और सुगंध से आपको अपनी ओर आकर्षित अवश्य करेंगी। आबादी वाले क्षेत्र से बेहद दूर होने के कारण यहाँ लोगों का आवागमन बेहद कम होता है, यदि आप ट्रैकिंग की इच्छा रखते हैं, शांति प्रिय हैं, प्रकृति से लगाव रखते हैं तो आपके लिए सुकुंडा बेहतरीन टूरिस्ट डेस्टिनेशन हो सकता है। 

आसपास के दर्शनीय स्थल

पोथिंग गांव से सुकुंडा को जाते समय आप यहाँ गांव के मध्य सुप्रसिद्ध भगवती मंदिर के दर्शन कर सकते हैं। जो सड़क मार्ग में ही स्थित है। यदि आप कपकोट-दूणी-पन्याती मार्ग से जा रहे हैं तो पोखरी स्थित श्री श्री 1008 गुरु गुंसाई देव धाम के दर्शन अवश्य करें। 

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सुकुंडा ताल तक कैसे पहुंचें

बागेश्वर जनपद मुख्यालय से सुकुंडा की दूरी लगभग 38 से 40 किलोमीटर है। सर्वप्रथम आपको कपकोट आना होगा। कपकोट पुल से सरयू पार कर पोथिंग गांव जाएँ। पोथिंग गांव के दूणी तोक तक वाहन से जा सकते हैं। पोथिंग के दूणी तोक से सुकुंडा ताल की दूरी 4 से 5 किलोमीटर है। जिसे आपको पैदल तय करना होगा। 

एक मार्ग कपकोट के दूणी, पन्याती, पोखरी होते हुए भी है, जिसे आपको करीब 10 -13 किलोमीटर पैदल तय करना होगा। इसके अलावा जगथाना गांव से भी एक मार्ग सुकुण्डा तक आता है। 

क्या लाएं साथ 

यदि आप सुकुंडा देखना चाहते हैं तो कम से कम तीन या पांच लोगों के साथ आएं। साथ में खाने-पीने के चीजें जरूर लाएं। गर्म कपड़े बनियान या जैकेट साथ रखें। अनुभवी व्यक्ति के साथ ही यहाँ आएं। शाम 2 बजे के बाद आप हर हाल में यहाँ से घर की ओर प्रस्थान कर लें। 

क्या न करें

सुकुण्डा बेहद ही शांत क्षेत्र है। यहां पहुंचकर आप शांति के साथ प्रकृति का आनंद लें। शोर न करें। सुकुंडा ताल की पवित्रता बनायें रखें। पवित्र भाव से आप यहाँ पहुंचें। जंगली जानवरों और प्रकृति को क्षति न पहुंचाएं। 

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रहने और खाने की व्यवस्था 

सुकुंडा क्षेत्र काफी दुर्गम है। यहां रहने एवं खाने की कोई व्यवस्था नहीं है। कपकोट या बागेश्वर में ही आपको होटल किराये पर उपलब्ध हो पाएंगे। 

सुकुंडा ताल के संरक्षण के लिए करना होगा काम -

पिछले डेढ़ दशक से सुकुंडा ताल के जलस्तर में कमी होने लगी है। सरकारी स्तर पर भी इस ताल के संरक्षण के लिए  काम करने की योजना है। पोथिंग, कपकोट और जगथाना गांवों की साझी विरासत का प्रतीक सुकुण्डा ताल के संरक्षण में यहाँ के लोगों की सहभागिता महत्वपूर्ण है।