उत्तराखंड के पर्वतीय अंचल में भाद्रपद की नवरात्रों में हिमालय पुत्री माँ नंदा की विशेष पूजा की जाती है। चाहे अल्मोड़ा स्थित नंदा देवी मंदिर में होने वाली पूजा हो या नैनीताल की, पूरा पहाड़ इस नवरात्र में अपनी आराध्य देवी माँ नंदा भगवती की पूजा अर्चना में व्यस्त रहता है। इन्हीं में बागेश्वर जनपद स्थित पोथिंग ग्राम के मध्य माँ नंदा भगवती का भव्य मंदिर है। जहाँ हर वर्ष भाद्रपद की नवरात्रों में माँ नंदा की विशेष पूजा की जाती है। यह पूजा पूरे 8 दिन तक चलती है।
400 से 500 ग्राम वज़नी पूड़ियों का भोग बनाने की परम्परा-
भगवती मंदिर पोथिंग में माता को 400 ग्राम से 500 ग्राम के वजनी पूड़ियों का भोग लगाने की एक विशिष्ट परम्परा है। यह पूड़ियाँ यहाँ हजारों की संख्या में बनाई जाती हैं और इसी पूड़ी को प्रसाद स्वरूप भक्तों को प्रदान की जाती है। मोटी पूड़ियाँ बनाने की यह परम्परा सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है। जिसे आज भी यहाँ के वाशिंदों ने कायम रखा है। इस मोटे सुनहरे भूरे रंग की पूड़ी के प्रसाद को लेने के लिए लोगों में खासा उत्साह रहता है। लोग अपने परिजनों को प्रसाद के तौर पर इन्हीं पूड़ियों को दूर-दूर तक भेजते हैं
वर्ष में सिर्फ एक बार खुलता है माता का मुख्य कपाट
यहाँ वर्ष में सिर्फ भाद्रपद में नवरात्रों में एक बार माता की पूजा होती है और मुख्य कपाट इन्हीं नवरात्रों में खुलता है। पूजा के बाद मुख्य कपाट एक वर्ष के लिए बंद कर दिए जाते हैं। हालाँकि वर्षभर भक्तों का ताँता लगा रहता है। लोग मंदिर प्रांगण ही पूजा-पाठ करते हैं।
पोथिंग ग्रामवासियों द्वारा आयोजित होती है यह पूजा
भगवती मंदिर पोथिंग में इस पूजा का आयोजन यहाँ के वाशिन्दों द्वारा किया जाता है। हर परिवार द्वारा माता के इस पूजा के लिए निर्धारित गेहूं, जौ, तिल, तेल एवं रूपये मंदिर में पहुंचाए जाते हैं। इसी रुपये और अनाज से माँ की पूजा विधि-विधान से संपन्न कराई जाती है। बाजानी (तोली ) से लेकर चलगाड़ और खन्यारी (पन्याती) तक के लोग इस पूजा में अनिवार्य रूप से अपनी सहभागिता करते हैं।
सर्वप्रथम माता की पूजा गड़िया परिवार के पूर्वजों ने प्रारम्भ करवाई
पोथिंग भगवती मन्दिर में इस पूजा का आयोजन सर्वप्रथम गढ़िया परिवार के पूर्वज श्री भीम सिंह गढ़िया, बलाव सिंह गढ़िया, हरमल सिंह गढ़िया, कल्याण सिंह एवं जैमन सिंह गढ़िया के परिवार द्वारा सैकड़ों वर्ष पूर्व किया गया था। उन्हीं के द्वारा नियुक्त दानू और कन्याल परिवार के लोग मंदिर के धामी हैं। इनके अलावा अलग-अलग परिवार के लोग आज भी निःस्वार्थ भाव से माँ की सेवा कर रहे हैं।
चांचरी गाने के लिए भी बांटे हैं मैदान
मंदिर में मौजूद हैं सैकड़ों वर्ष पूर्व रखी शिलायें
भगवती मंदिर के तिबारी में सैकड़ों वर्ष पूर्व रखी दो गोल पत्थर के गोले आज भी प्रांगण में मौजूद हैं। लोग इन शिलाओं को उठाने का प्रयास कर अपनी भक्ति और शक्ति का प्रदर्शन करते हैं।
कैसे पहुंचे भगवती मंदिर पोथिंग













