Bhagwati Mandir Pothing - लोगों की अगाध आस्था का केंद्र।

Pothing
Maa Nanda Bhagwati Temple-Pothing, District- Bageshwar
उत्तराखंड के पर्वतीय अंचल में भाद्रपद की नवरात्रों में हिमालय पुत्री माँ नंदा की विशेष पूजा की जाती है। चाहे अल्मोड़ा स्थित नंदा देवी मंदिर में होने वाली पूजा हो या नैनीताल की, पूरा पहाड़ इस नवरात्र में अपनी आराध्य देवी माँ नंदा भगवती की पूजा अर्चना में व्यस्त रहता है। इन्हीं में बागेश्वर जनपद स्थित पोथिंग ग्राम के मध्य माँ नंदा भगवती का भव्य मंदिर है। जहाँ हर वर्ष भाद्रपद की नवरात्रों में माँ नंदा की विशेष पूजा की जाती है। 
यह पूजा पूरे 8 दिन तक चलती है। प्रतिपदा से लेकर सप्तमी तक ग्राम में स्थित माँ की तिबारी में रातभर जागरण होता है। रात के विभिन्न प्रहरों में  माता की विशेष आरती होती हैं। लोग पारंपरिक झोड़ा-चांचरी गाकर अपना मनोरंजन करते हैं। यहाँ पर गढ़वाल और कुमाऊं की संस्कृति का भी संगम देखने को मिलता है। माता के जागर गाने के लिए गढ़वाल से जगरियों का दल आमंत्रित किया जाता है। सप्तमी के दिन हरेला पर्व पर कपकोट के उत्तरौड़ा से लाये गए कदली वृक्ष को काटकर मुख्य मंदिर में माँ के भंडारे के साथ ले जाया जाता है। ढोल-नगाड़ों, माता के निशानों, लोगों के कंधों पर बैठे देव डांगरों और सैकड़ों भक्तों की लाइन, एक दर्शनीय पल होता है। इस रात्रि को दूर-दूर से भक्त और मेलार्थी पहुँचते हैं। रात्रि की चांचरी बड़ी ही जोशीली और अपने आप में देखने लायक होती है।  दर्जनों हुड़कों और चांचरी गाते लोगों से पूरी रात गुंजायमान रहती है। रात्रि 9-10 बजे से प्रारम्भ हुई चांचरी सुबह के 4-5 बजे तक चलती है, उसके बाद मेलार्थी अपना स्नान इत्यादि करके नंदा अष्टमी पर होने वाली पूजा के लिए मुख्य मंदिर की ओर चल पड़ते हैं।



नंदा अष्टमी के दिन पोथिंग में हजारों भक्त माता के दर्शनार्थ पहुँचते हैं। लोग मंदिर में दान-पाठ इत्यादि कर माता से मनौती मांगते हैं। मनौती पूरी होने पर यहाँ लोग माता को घंटियां, भकोरे, झांझर, ढोल-नगाड़े, निशान इत्यादि चढ़ाते हैं। लोग दिनभर पारम्परिक लोकनृत्य गीत गीत झोड़ा-चांचरी गाकर अपना मनोरंजन करते हैं। इस दिन यहाँ एक बड़े मेले का आयोजन भी होता है जिसे लोग 'पोथिंग का मेला' के नाम से जानते हैं।  स्थानीय व्यापारियों के अलावा यहाँ दूर-दूर से व्यापारी आकर अपनी दुकानें सजाते हैं। जलेबी, छोले-समोसे, मिठाईयां लोग यहाँ बड़े चाव से खाते हैं।

400 से 500 ग्राम वज़नी पूड़ियों का भोग बनाने की परम्परा-

भगवती मंदिर पोथिंग में माता को 400 ग्राम से 500 ग्राम के वजनी पूड़ियों का भोग लगाने की एक विशिष्ट परम्परा है। यह पूड़ियाँ यहाँ हजारों की संख्या में बनाई जाती हैं और इसी पूड़ी को प्रसाद स्वरूप भक्तों को प्रदान की जाती है। मोटी पूड़ियाँ बनाने की यह परम्परा सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है। जिसे आज भी यहाँ के वाशिंदों ने कायम रखा है। इस मोटे सुनहरे भूरे रंग की पूड़ी के प्रसाद को लेने के लिए लोगों में खासा उत्साह रहता है।  लोग अपने परिजनों को प्रसाद के तौर पर इन्हीं पूड़ियों को दूर-दूर तक भेजते हैं।


वर्ष में सिर्फ एक बार खुलता है माता का मुख्य कपाट  -

यहाँ वर्ष में सिर्फ भाद्रपद में नवरात्रों में एक बार माता की पूजा होती है और मुख्य कपाट इन्हीं नवरात्रों में खुलता है। पूजा के बाद मुख्य कपाट एक वर्ष के लिए बंद कर दिए जाते हैं।  हालाँकि वर्षभर भक्तों का ताँता लगा रहता है। लोग मंदिर प्रांगण ही पूजा-पाठ करते हैं।

तिबारी का एक सुन्दर दृश्य।
पोथिंग ग्रामवासियों द्वारा आयोजित होती है यह पूजा-
भगवती मंदिर पोथिंग में इस पूजा का आयोजन यहाँ के वाशिन्दों द्वारा किया जाता है। हर परिवार द्वारा माता के इस पूजा के लिए निर्धारित गेहूं, जौ, तिल, तेल एवं रूपये मंदिर में पहुंचाए जाते हैं। इसी रुपये और अनाज से माँ की पूजा विधि-विधान से संपन्न कराई जाती है। बाजानी (तोली ) से लेकर चलगाड़ और खन्यारी (पन्याती) तक के लोग इस पूजा में अनिवार्य रूप से अपनी सहभागिता करते हैं।

सर्वप्रथम माता की पूजा गड़िया परिवार के पूर्वजों ने प्रारम्भ करवाई -
पोथिंग भगवती मन्दिर में इस पूजा का आयोजन सर्वप्रथम गढ़िया परिवार के पूर्वज श्री भीम सिंह गढ़िया, बलाव सिंह गढ़िया, हरमल सिंह गढ़िया, कल्याण सिंह एवं जैमन सिंह गढ़िया के परिवार द्वारा सैकड़ों वर्ष पूर्व किया गया था। उन्हीं के द्वारा नियुक्त दानू और कन्याल परिवार के लोग मंदिर के धामी हैं। इनके अलावा अलग-अलग परिवार के लोग आज भी निःस्वार्थ भाव से माँ की सेवा कर रहे हैं।


चांचरी गाने के लिए भी बांटे हैं मैदान -
पहले लोग चांचरी गाने के बहुत शौक़ीन माने जाते थे।  दूर-दूर से लोग यहाँ चांचरी गाने के लिए पहुँचते थे। लोग अपने-अपने गाँव की चांचरी गाकर आपस में स्पर्धा करते थे इसी लिए पूर्वजों द्वारा भगवती मंदिर के रात्रि जागरण स्थल तिबारी में चांचरी गाने के लिए अलग-अलग मैदान आवंटित किये हैं। 

मंदिर में मौजूद हैं सैकड़ों वर्ष पूर्व रखी शिलायें - 
भगवती मंदिर के तिबारी में सैकड़ों वर्ष पूर्व रखी दो गोल पत्थर के गोले आज भी प्रांगण में मौजूद हैं। लोग इन शिलाओं को उठाने का प्रयास कर अपनी भक्ति और शक्ति का प्रदर्शन करते हैं। 

कैसे पहुंचे भगवती मंदिर पोथिंग -
माँ भगवती के मंदिर तक पहुंचने के लिए आपके जनपद मुख्यालय बागेश्वर से कपकोट और वहां से पोथिंग गांव  तक आना होता है। जनपद मुख्यालय से मंदिर की दूरी लगभग 28 किलोमीटर के करीब है।  आने-जाने के लिए वाहन आसानी से उपलब्ध रहते हैं।  

मन्दिर में कदली वृक्ष लाते समय उपस्थित जनसमुदाय।


भगवती मंदिर पोथिंग में झोड़ा-चांचरी गाते श्रद्धालु।

भगवती मंदिर पोथिंग में चांचरी का आनंद लेते लोग।