बिरुड़ पंचमी-गौरा के अपने मायके आने की ख़ुशी का पर्व।

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उत्तराखंड की संस्कृति लोक परंपराओं और पर्वों से समृद्ध है, जो न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक हैं, बल्कि समाज की सामूहिक चेतना और पारिवारिक मूल्यों को भी जीवंत बनाए रखते हैं। कुमाऊं अंचल में मनाया जाने वाला 'बिरुड़ पंचमी' ऐसा ही एक पारंपरिक पर्व है, जो भाद्रपद माह की शुक्ल पंचमी को मनाया जाता है। यह पर्व विशेष रूप से महिलाओं द्वारा गौरा माता के मायके आगमन की खुशी में श्रद्धा, प्रेम और सौहार्द के साथ मनाया जाता है। इसमें व्रत, पूजन, पोटली बनाने की परंपरा और डोर व दुबड़ा धारण करने जैसे रीति-रिवाजों के माध्यम से लोक आस्था की गहराई और पारिवारिक जुड़ाव की झलक मिलती है। समय के साथ भले ही इस पर्व की सामूहिकता कुछ सीमित हो गई हो, लेकिन इसके भाव और महत्व आज भी कुमाऊंनी जीवन में गहराई से रचे-बसे हैं। आईये विस्तृत में जानते हैं इस पर्व के बारे में - 

Birud Panchami 2025:  इस वर्ष बिरुड़ पंचमी का त्योहार दिनांक 28 अगस्त 2025, को मनाया जायेगा। 

कुमाऊं में खासकर पिथौरागढ़ जिले के गांवों में भादो महीने की शुक्ल पंचमी को मनाये जाने वाले पर्व को लोग 'बिरुड़ पंचमी' के नाम से जानते हैं। इस अवसर पर कुमाऊंनी महिलाएं बांह पर डोर धारण करती हैं और इसके अगले दिन गले में दुबड़ा धारण करती हैं। 

यह त्यौहार कुमाऊँ में गौरा के अपने मायके आने की ख़ुशी में बनाया जाता है। बिरुड़ पंचमी से एक दिन पूर्व घरों में दो पोटलियां बनाई जाती हैं। एक मुट्ठी गेहूं, हल्दी का टुकड़ा, एक दाड़िम, भेंट पंचरत्न (पैसे) रखकर कपड़े की दो अलग-अलग पोटली बांधी जाती है। प्रत्येक पोटली के ऊपर ग्यारह अथवा आठ दूब घास रखे जाते हैं। इन पोटलियों को बर्तन में पानी में भरे पानी में डालकर घर में मंदिर में रख देते हैं। बिरुड़ पंचमी को महिलाएं व्रत रखकर बर्तन समेत पोटलियों के ऊपर डोर रखकर मुहल्ले में एक घर में सामूहिक रूप से पूजा अर्चना करती हैं। तत्पश्चात बायें हाथ के बाजू में डोर धारण करती हैं और इन पोटलियों को मंदिर में ही रख देती हैं। 

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बिरुड़ पंचमी के अगले दिन दुर्बाष्टमी पर नन्द अपनी भाभियों द्वारा मंदिर में रखी गई पोटलियां घर पर छिपा देती हैं। भाभी घर पर रखी पोटलियों को ढूंढ़कर ले लाती हैं और कहती हैं वह हीरा-मोती (पोटलियां) ले आई हैं। इसके बाद महिलाएं शगुन आंखर तथा मंगल गीत गाकर पानी में भीगी पोटलियों को खोलकर गेहूं, चने (हीरा मोती), आटा भगवान शिव तथा पार्वती को अर्पित करती हैं। महिलाएं तथा लड़कियां गले में दुबड़ा धारण कर अपने परिवार तथा ईष्ट-मित्रों की सुख समृद्धि की कामना करती हैं। लेकिन आधुनिकता के चलते वर्तमान में महिलाएं यह पर्व अपने-अपने घरों में ही मनाते हैं।

बिरुड़ पंचमी और उसके बाद मनाये जाने वाले सातों-आठों पर्व के बारे में विस्तृत में जानने  के लिए आप इस लिंक पर जाएँ -  पिथौरागढ़ का सातों- आठों पर्व 


विनोद सिंह गढ़िया

ई-कुमाऊँ डॉट कॉम के फाउंडर और डिजिटल कंटेंट क्रिएटर हैं। इस पोर्टल के माध्यम से वे आपको उत्तराखंड के देव-देवालयों, संस्कृति-सभ्यता, कला, संगीत, विभिन्न पर्यटक स्थल, ज्वलन्त मुद्दों, प्रमुख समाचार आदि से रूबरू कराते हैं। facebook youtube x whatsapp

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