उत्तराखण्ड में भी है माता वैष्णो मंदिर | Dunagiri Temple Dwarahat, Uttarakhand

उत्तराखण्ड यानि देवभूमि के द्वाराहाट में स्थित माँ दूनागिरी का भव्य मन्दिर अपार आस्था और श्रद्धा का केंद्र है। यहाँ माँ दूनागिरी वैष्णवी रूप में पूजी जाती है। इस धाम में वर्षभर श्रद्धालुओं का आवागमन रहता है। मंदिर में अखंड ज्योति का जलते रहना इसकी एक विशेषता है। माता का वैष्णवी रूप होने से यहां किसी प्रकार की बलि नहीं चढ़ाई जाती। मंदिर में अर्पित किया गया नारियल भी परिसर में नहीं फोड़ा जाता है। लोगों को विश्वास है कि माँ वैष्णवी संतान प्राप्ति हेतु मंदिर में अखंड दीपक जलाकर तपस्या करने वाली महिला को पुत्र रत्न प्रदान करती हैं। मनोकामना पूरी होने पर श्रद्धालु मंदिर में सोने और चांदी के छत्र, घंटियां, शंख चढ़ाते हैं।

Dunagiri Temple
दूनागिरी माता मंदिर 

द्वाराहाट बाजार से करीब 14 किमी दूर मंगलीखान बस स्टेशन से करीब 500 सीढ़ियां चढ़कर पहुंचते हैं दूनागिरि माता के भव्य मंदिर में। यह मंदिर बांझ, देवदार, अकेसिया और सुरई समेत विभिन्न प्रजाति के पेड़ों के झुरमुटों के मध्य स्थित है, जिससे यहां आकर मन को काफी शांति मिलती है। एक कथा के अनुसार त्रेतायुग में लंका में लक्ष्मण को शक्ति लगने पर सुषैण वैद्य ने हनुमान जी को संजीवनी बूटी लेने को द्रोणांचल पर्वत पर भेजा। हनुमान जी इस पर्वत को लेकर जा रहे थे तो पहाड़ी से दो शिलाएं गिर गई। इनका ब्रह्मचरी नाम पड़ गया। 1238 ईसवी में कत्यूर वंशीय राजा सुधारदेव ने मंदिर का लघु निर्माण कर मूर्ति स्थापित की। हिमालय गजिटेरियन के लेखक ईटी एडकिंशन के अनुसार मंदिर होने का प्रमाण सन् 1181 शिलालेख में मिलता है। इस पर्वत पर पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य द्वारा तपस्या करने पर इसका नाम द्रोणागिरि भी है।

Dunagiri Temple 
लोग यह भी बताते हैं कि द्वापर युगी पांडवों का अज्ञातवास भी दूनागिरी क्षेत्र के पांडवखोली, विराटनगर (गनाई) व मत्स्य प्रदेश (मासी) में बीता। देवी पुराण के अनुसार अज्ञात वास के दौरान पांडवों ने युद्ध में विजय तथा द्रोपदी ने सतीत्व की रक्षा के लिए दूनागिरि की दुर्गा रूप में पूजा की। स्कंदपुराण के मानसखंड के द्रोणाद्रिमहात्म्य में दूनागिरि को महामाया, हरिप्रिया, दुर्गा के अन्य विशेषणों के अतिरिक्त वह्न्मिति के रूप में प्रदर्शित किया गया है। नवरात्र में दूनागिरि में मेले का आयोजन किया जाता है। इसमें सप्तमी की कालरात्रि को जागरण कर श्रद्धालु काली की पूजा करते हैं।

इस मंदिर में वैसे तो पूरे वर्ष भक्तों की कतार लगी रहती है, मगर नवरात्र में यहां मां दुर्गा के भक्त दूर-दराज से बड़ी संख्या में आशीर्वाद लेने आते हैं।