Harela 2025: प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण का सन्देश देता उत्तराखण्ड के लोकपर्व हरेला इस वर्ष 16 जुलाई 2025 को मनाया जाएगा। सावन संक्रांति को मनाये जाने वाले इस पर्व को यहाँ बड़े धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। कुमाऊँ में यह पर्व ‘हरेला’ और गढ़वाल में ‘हरयाळी’ के नाम से जाना जाता है।
हरेला पर्व के रोचक तथ्य (Interesting Facts about Harela Festival)
- प्रकृति पूजन का पर्व : हरेला पर्व उत्तराखंड में पर्यावरण और प्रकृति की पूजा का प्रतीक है। यह खेती, हरियाली और वर्षा ऋतु के स्वागत के रूप में मनाया जाता है।
- कृषि और हरियाली का संकेत : हरेला शब्द का अर्थ है “हरियाली”, और यह पर्व आने वाली फसल के अच्छे होने की कामना के साथ जुड़ा है।
- 09 दिन पहले बोया जाता है बीज : परम्परानुसार इस पर्व से 9 या 10 दिन पूर्व सात प्रकार के अनाज (गेहूं, जौ, मक्का, उड़द, गहत, सरसों, भट्ट) पारम्परिक ढंग से एक टोकरी में बोए जाते हैं, जिन्हें ‘हरेला’ कहा जाता है।
- परिवार के बुजुर्ग आशीर्वाद देते हैं : पर्व के दिन हरेला को काटकर, जिसको हरेला पतीसना कहते हैं, के तिनड़ों को सबको शिरोधार्य करते हैं और आशीर्वाद देते हैं।
- साल तीन बार बोया जाता है हरेला : उत्तराखंड के कुमाऊँ अंचल में हरेला को साल में विभिन्न अवसरों पर तीन बार बोया जाता है। पहला -चैत्र माह की नवरात्रि में, दूसरा -आषाढ़ में (वर्षा ऋतु के आरंभ पर) और तीसरा – आश्विन की नवरात्रि में।
- मुख्य रूप से आषाढ़ का हरेला प्रसिद्ध है : इनमें सबसे ज्यादा महत्त्व आषाढ़ महीने के हरेला को दिया जाता है, जो सावन के पहले दिन मनाया जाता है।
- वरिष्ठ महिलाएं करती हैं विशेष पूजा : महिलाएं घर की समृद्धि और पर्यावरण रक्षा की कामना से देवी-देवताओं की पूजा करती हैं।
- बच्चों के लिए खास परंपरा : पर्व के दिन बच्चों के सिर पर हरेला रखकर दीर्घायु होने की कामना की जाती है।
- पर्यावरण संरक्षण का संदेश : पर्व के अवसर पर पेड़-पौधे लगाने की परंपरा भी है, जिससे यह सीधे तौर पर ‘हरित आंदोलन’ से जुड़ता है।
- लोक आस्था से जुड़ा पर्व : मान्यता है कि हरेला जितना घना और लंबा होता है, वर्षा और फसल उतनी ही अच्छी होती है।
- पर्यावरण संरक्षण के प्रतीक रूप में सरकारी मान्यता : उत्तराखंड सरकार ने इसे पर्यावरण संरक्षण से जोड़ते हुए कई जगह वृक्षारोपण कार्यक्रमों के साथ मनाना शुरू किया है।











