हरेला पर्व हमें नई ऋतु के शुरू होने की सूचना देता है। यह त्योहार हिंदी सौर पंचांग की तिथियों के अनुसार तीन बार मनाया जाता है। शीत ऋतु की शुरुआत अश्विन मास से होती है। इसलिए अश्विन मास की दशमी को हरेला मनाया जाता है। गर्मी की शुरुआत चैत्र मास से होती है। इसलिए चैत्र मास की नवमी को हरेला मनाया जाता है। इसी प्रकार वर्षा ऋतु की शुरुआत सावन माह से होती है, इसलिए एक गते श्रावण को हरेला मनाया जाता है। किसी भी ऋतु की सूचना को आसान बनाने और कृषि प्रधान क्षेत्र होने के कारण ऋतुओं का स्वागत करने की परंपरा बनी होगी। श्रावण मास के हरेले के दिन शिव-पार्वती की मूर्तिया भी गढ़ी जाती हैं, जिन्हे डिकारे कहा जाता है। शुद्ध मिट्टी की आकृतियों को प्राकृतिक रंगों से शिव परिवार की प्रतिमाओं का आकार दिया जाता है और इस दिनपूजा की जाती है। (Harela Festival)
हरेला बोने की विधि –
हरेला शब्द का स्रोत हरियाली से है। हरेले के पर्व में नौ दिन पहले घर के भीतर स्थित मंदिर या गांव के मंदिर के अंदर सात प्रकार के अन्न (गेहूं, जौ, मक्का, गहत, सरसों, उड़द और भट्ट) को रिंगाल की टोकरी में बोया जाता है। इसके लिए एक विशेष प्रकार की प्रक्रिया अपनायी जाती है। पहल टोकरी में एक परत मिट्टी की बिछायी जाती है, फिर इसमें बीज डाले जाते हैं। इसके बाद फिर से मिट्टी डाली जाती है। फिर से बीज डाले जाते हैं। यही प्रक्रिया पांच से छह बार अपनायी जाती है। इसे सूर्य की सीधी रोशनी से बचाया जाता है। नौंवे दिन इसकी पाती (एक स्थानीय वृक्ष) की टहनी से गुड़ाई की जाती है।
कब काटा जाता है हरेला –
हरेले की शुभकामना इस प्रकार दी जाती है –
धरती जस आगव, आकाश जसचाकव है जये
सूर्य जस तारण, स्यावे जसि बुद्धि हो
दूब जस फलिये
सिल पिसि भात खाये, जांठि टेकि
झाड़ जाये
हरेला त्यौहार की शुभकामना | Harela Wishes |
हरेले के दिन सामूहिक भोज का आयोजन –
इसके बाद परिवार के सभी लोग साथ में बैठकर पकवानों का आनंद उठाते हैं। इस दिन विशेष रूप से उड़द के दाल के बड़े, पुवे और खीर बनाई जाती है।
हरेले पर वृक्षारोपण की परम्परा –
हरेले के दिन पूरे उत्तराखंड में पेड़-पौधे लगाने की परम्परा है। सभी लोग अपने-अपने घरों के आसपास, खेतों में, बगीचों में पेड़-पौधे लगाते हैं। इस पर्व पर लगाई गई पेड़ों की टहनी भी रोप देने से उसमें जड़ें निकल आती हैं।
हरेला से जुड़ी मान्यता –
यह भी है परम्परा –
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