फूलों की घाटी, जहाँ प्रकृति हर 15 दिन में बदल लेती है नया रंग।

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उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित फूलों की घाटी (Valley of Flowers) प्रकृति प्रेमियों और साहसिक यात्रा का शौक रखने वाले लोगों के लिए किसी स्वप्नलोक से कम नहीं। छह महीने के लंबे इंतजार के बाद 1 जून से यह घाटी एक बार फिर से पर्यटकों के लिए खुल चुकी है। पहले ही दिन 49 पर्यटकों ने इसकी खूबसूरती को निहार लिया है। फूलों की घाटी के खुलने का इन्तजार कर रहे पर्यावरण प्रेमी, प्रकृति के शोधकर्ता और रोमांच के शौकीन खासे उत्साहित हैं। इस बार उम्मीद जताई जा रही है कि तीर्थयात्रा सीजन के जोश को देखते हुए घाटी में रिकॉर्ड पर्यटक पहुंच सकते हैं, जिससे स्थानीय युवाओं को रोजगार और पर्यटन व्यवसाय को भी नई गति मिलेगी।

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जहाँ हर 15 दिन में अपना रंग बदलती है घाटी 

फूलों की घाटी उत्तराखंड के पहाड़ों के बीच छुपी एक ऐसी जगह है, जहां प्रकृति हर वर्ष रंग, गंध और सौंदर्य की सैकड़ों परतें बिछा कर इस लोक का श्रृंगार करती है। यहां जुलाई से अक्टूबर तक हर 15 दिन में घाटी अपना रंग बदलती है। इसका कारण है कि यहाँ अलग-अलग प्रजातियों के फूल अलग-अलग समय पर खिलते हैं। 500 से अधिक फूलों की प्रजातियां यहां पाई जाती हैं, जिनमें से कुछ अत्यंत दुर्लभ हैं। 

घाटी में खिलते हैं ये प्रमुख फूल 

  • थर्मोप्सिस बरबाटा – पीले फूलों वाली एक जड़ी-बूटी
  • फ्रिटीलेरिया सिर्रोसा (लहसुन जड़ी) – औषधीय गुणों से युक्त दुर्लभ प्रजाति
  • एनीमोन पॉलीएंथेस – रंग-बिरंगे पंखुड़ियों वाला फूल
  • कैल्था (मार्श मैरीगोल्ड) – जल स्रोतों के पास उगने वाला सुनहरा फूल
  • पोटेंटिला (वज्रदंती) – पीले और गुलाबी रंगों में मिलने वाला सुंदर फूल
  • सेफलैनथेरा लोंगीफोलिया (ऑर्किड) – एक दुर्लभ ऑर्किड प्रजाति
  • आइरिस कुमाओनेंसिस – उत्तराखंड क्षेत्र की विशेष प्रजाति
  • एलियम (फरड) – प्याज़ व लहसुन की प्रजातियों में शामिल, सुंदर फूलों वाला
  • पाइकोराइज़ा कुररोआ (कुटकी) – महत्वपूर्ण औषधीय पौधा
  • रोडूडेंड्रॉन एंथोपोगोन (पीला बुरांश) – उच्च हिमालयी क्षेत्र में पाया जाने वाला पीला फूल
  • रोडूडेंड्रॉन केमपैनूलेटम (सफेद बुरांश) – आकर्षक सफेद फूलों वाला पेड़। 

 

वैश्विक धरोहर 

'फूलों की घाटी' को वर्ष 2005 में यूनेस्को (संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन) द्वारा विश्व धरोहर स्थल (World Heritage Sites) घोषित किया गया। यह घाटी नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान (Nanda Devi National Park) के साथ मिलकर विश्व धरोहर स्थल का हिस्सा है। यह क्षेत्र करीब 87.5 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। घाटी समुद्र सतह से लगभग 3,658 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और अपने समृद्ध जैवविविधता, अद्भुत फूलों और प्राकृतिक सुंदरता के लिए आज पूरे विश्वभर में प्रसिद्ध है।

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इतिहास: जब फ्रैंक स्माइथ ने खोजा यह स्वर्ग

इस घाटी को विश्व के सामने लाने का श्रेय पर्वतारोही फ्रैंक स्माइथ (Frank Smythe) को जाता है, जो 1931 में कामेट पर्वत से लौटते समय रास्ता भटक कर फूलों की दुनिया में पहुँच गए थे। तब इस घाटी को स्थानीय लोग 'भ्यूंडार' के नाम से जानते हैं। घाटी में खिले रंग-बिरंगे असंख्य फूलों की दुनियां को देखकर वे आश्चर्यचकित रह गए। सन 1937 में वे पुनः यहां आए और इस स्थान पर गहन शोध कर 300 से अधिक फूलों की प्रजातियों की जानकारी एकत्र की। सन 1938 में उन्होंने "Valley of Flowers" नामक पुस्तक प्रकाशित की, जिसने इस घाटी में छिपे अद्भुत संसार को दुनिया के सामने ला दिया। वहीं उत्तराखंड में रहने वाले लोगों को फूलों के इस संसार के बारे में पहले से ज्ञात था। लोगों और अण्वालों में यह भ्रम फैला दिया कि यहां आंछरियां रहती हैं, जो इन्सान को मार देती हैं, ताकि इस घाटी का अस्तित्व बना रहे।
 

मार्गरेट लैगी: घाटी की चिरनिद्रा में चली गई वैज्ञानिक

सन 1939 में लंदन की कीव बॉटेनिकल गार्डन से वैज्ञानिक जोन मार्गरेट लैगी यहां फूलों का अध्ययन करने आईं। दुर्भाग्यवश एक चट्टान से गिरकर उनकी मृत्यु हो गई। आज भी उनका स्मारक घाटी में बना हुआ है, जहां पर्यटक उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

वन्य जीवन और जैव विविधता

घाटी सिर्फ फूलों तक सीमित नहीं है, बल्कि यहां तितलियों का स्वर्ग, दुर्लभ वनस्पतियाँ और हिमालयी जीव-जंतु भी देखने को मिलते हैं। इनमें हिम तेंदुआ, मोनाल, कस्तूरी मृग, काला भालू जैसे जीव प्रमुख हैं।

फूलों की घाटी का महत्व

आज के दौर में जब पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन की मार झेल रही है, ऐसे में फूलों की घाटी एक संवेदनशील इकोसिस्टम का उदाहरण है। यह घाटी हमें याद दिलाती है कि प्राकृतिक सुंदरता और जैव विविधता को बचाना अब केवल शौक नहीं, बल्कि जिम्मेदारी बन चुकी है।

 

बीते वर्षों में पर्यटन का ग्राफ

फूलों की घाटी में पर्यटकों की संख्या हर वर्ष बढ़ती रही है। कुछ प्रमुख आंकड़े:

  • 2014    484
  • 2015    181
  • 2016    6,503
  • 2017    13,752
  • 2018    14,742
  • 2019    17,424
  • 2020    932 (कोविड)
  • 2021    9,404
  • 2022    20,827
  • 2023    13,000
  • 2024    19,436

2022 में सबसे अधिक 20,827 पर्यटक पहुंचे, जिनमें 280 विदेशी पर्यटक भी शामिल थे। 

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प्रवेश शुल्क विवरण (Valley of Flowers Ticket Price)

  1. भारतीय पर्यटक  :  ₹200
  2. विदेशी पर्यटक  :  ₹800
  3. भारतीय बच्चे (0–12 वर्ष)   : निःशुल्क
  4. भारतीय छात्र (12–18 वर्ष)  :  ₹50
  5. भारतीय छात्र / वरिष्ठ नागरिक (18+ वर्ष)  :  ₹100


Valley of Flowers Registration : फूलों की घाटी के दीदार करने के लिए सबसे पहले पर्यटकों को परमिट प्राप्त करना होता है। यह एक अनिवार्य दस्तावेज है, इसके बिना कोई भी पर्यटक घाटी में प्रवेश नहीं कर पाता है।  परमिट ऑनलाइन प्राप्त किया जा सकता है या आप वहां पर बने काउंटर्स पर परमिट प्राप्त कर सकते हैं। 



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कब और कैसे पहुंचे?

घाटी हर वर्ष 1 जून से 31 अक्टूबर के मध्य खुली रहती है। जुलाई से सितंबर का समय सबसे बेहतर माना जाता है क्योंकि इस दौरान अधिकतम प्रजातियों के फूल खिले होते हैं।

कैसे पहुंचे:

  1.  सड़क मार्ग से: गोविंदघाट तक वाहन से पहुंचा जा सकता है।
  2.  पैदल यात्रा: गोविंदघाट से घांघरिया (14 किमी) तक ट्रेकिंग करनी होती है। फिर यहां से 3 किमी की पैदल दूरी तय कर घाटी तक पहुंचा जा सकता है।

रहने की व्यवस्था-

घांघरिया में होटल, गेस्ट हाउस और धर्मशालाओं की सुविधा उपलब्ध है, जहाँ अग्रिम बुकिंग कराई जा सकती है।  

ध्यान रखने योग्य बात : घाटी में प्रतिदिन सुबह 7 बजे से दोपहर 1 बजे तक ही प्रवेश की अनुमति है।  


फूलों की घाटी सिर्फ एक दर्शनीय स्थल नहीं, बल्कि प्राकृतिक के उपहारों से भरा हुआ सजीव संग्रहालय है। यह घाटी हमें बोध कराती है कि प्रकृति की गोद में सच्चा सुख है, और उसकी रक्षा ही हमारी सबसे बड़ी जिम्मेदारी है। इस वर्ष जो भी पर्यटक यहां आएंगे, वे निश्चित रूप से इस घाटी के रंग, सुगंध और शांति में खो जाएंगे-एक ऐसी यात्रा, जो कुछ घंटे की है लेकिन आजीवन अविस्मरणीय रहेगी। 

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