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परंपरागत जल स्रोतों के संरक्षण के लिए अनूठी पहल।  

On: October 11, 2025 3:26 PM
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naula dhara

उत्तराखण्ड के परंपरागत जल स्रोत (Traditional Water Source) हमारे नौले एवं धारे ही हैं। ये यहाँ की संस्कृति और परम्परा में रचे बसे हैं। इनका उपयोग यहाँ के लोग सदियों से करते आये हैं। मनुष्य से लेकर मवेशी और अन्य जीव इन्हीं के जल पर निर्भर थे, लेकिन वर्तमान में ये नौले और धारे उपेक्षित हैं। बदलती जलवायु, जीर्णोद्धार और रख-रखाव के अभाव में जीवन के ये स्रोत अब अपने अस्तित्व को खोते जा रहे हैं। परंपरागत जल स्रोतों की वर्तमान स्थिति को देखते हुए बागेश्वर जिले के चौगांवछीना के ग्रामीण अपने गांव के इन स्रोतों के संरक्षण और संवर्द्धन के लिए आगे आये हैं। यहाँ के ग्रामीण पिछले एक साल से लोगों को जागरूक करने के लिए धारों की पूजा, पर्यावरण एवं जल संरक्षण कार्यक्रम ( Environment and Water Conservation Program) के तहत अपने क्षेत्र के परंपरागत जलस्रोतों को जीवित रखने के लिएकाम कर रहे हैं।

बागेश्वर जिले के चौगांवछीना के ग्रामीणों के सहयोग से देवलधार एकता सांस्कृतिक मंचअपने क्षेत्र के पारम्परिक जल स्रोतों के संरक्षण और संवर्द्धन के लिए कार्य कर रही है। हर साल मंच के सदस्य गांव के धारों और नौलों की पूजा कर ग्रामीणों को अपने इन पारम्परिक जीवन के स्रोतों की महत्ता और संरक्षण एवं संवर्द्धन के लिए प्रेरित करते हैं। समाजसेवी विजय रावत बताते हैं उनकी इस पहल से लोग अब अपने इन पारम्परिक जलस्रोतों के प्रति सजग दिखते हैं। ग्रामीण नौले-धारों के आसपास साफ़-सफाई का विशेष ध्यान देने लगे हैं। लोगों की नियमित देखभाल से अब धारों में पहले की अपेक्षा अधिक मात्रा में पानी प्राप्त होने लगा है।

समाजसेवी विजय रावत ने बताया युवा अब अपने इन नौलों-धारों की महत्ता को समझने लगे हैं। वे यहाँ की स्वच्छता पर विशेष ध्यान देते हैं। सरकार के सहयोग से चौगांवछीना के कुछ धारों का जीर्णोद्धार किया गया है। उन्होंने वन विभाग से नौलों-धारों के आपसपास वृक्षारोपण के लिए पौधों की मांग की है।

उत्तराखण्ड में धारा पूजन की परम्परा

उत्तराखण्ड में धारे, नौलों की पूजा सैकड़ों वर्षों से होती चली आ रही है। कुछ वर्षों पहले तक समय-समय पर जल स्रोतों की पूजा होती थी। विभिन्न धार्मिक
कार्यक्रमों के शुरू होने से पहले धूप-दीप जलाकर नजदीकी जलस्रोत से पानी को अविरल बहते रहने की कामना की जाती थी और इस कार्यक्रम के लिए अधिक मात्रा में जल देने के लिए याचना की जाती थी। यहाँ धारों के आसपास बहुत से नाग देखे जा सकते हैं। इन्हें इन धारों के रक्षक होने के नाते पूजा की परम्परा थी। हमने अनुभव किया है धारे के आसपास रहने वाले नागों ने कभी भी पानी पीने आये मनुष्य या जानवर को कोई भी नुकसान नहीं पहुँचाया है। उत्तराखण्ड में धारों और नौलों की धार्मिक महत्ता को देखते हुए कोई भी रजस्वला महिला यहाँ स्नान नहीं करती थी।

विवाह के बाद घर में आई नयी दुल्हन द्वारा धारे की पूजा ( Dhara Poojan ) कर ताँबे की गगरी में घर पर पानी लाने की परम्परा ये दिखाती है हमारी संस्कृति और हमारे समाज ने जीवनदायिनी नौलों और धारों को पूजनीय बनाया है, लेकिन आज हम इस परम्परा को भूल से गए हैं। यदि हमें अपने अस्तित्व को बनाये रखना है तो जीवन के इन स्रोतों को जीवित रखने के लिए आगे आना होगा।

जल स्रोतों के अस्तित्व को खतरा

वर्तमान में जल संकट से देश के कई राज्य जूझ रहे हैं। इनमें धीरे-धीरे उत्तराखण्ड राज्य के वे गांव भी शामिल होते जा रहे हैं जहाँ कभी लोग नौले धारे के स्वच्छ और निर्मल जल पीकर निरोगी जीवन जीते थे। पहाड़ के गांवों में हर घर नल , हर घर जल जैसी सुविधा प्राप्त होने से लोगों ने अपने पारम्परिक जल स्रोतों की देखभाल करनी ही छोड़ दी है। यहाँ एक ओर हर वर्ष की वनाग्नि हमारे जल स्रोतों को सुखाते जा रही है, वहीं गांव के ही कुछ लोग नौलों -धारों के आसपास अतिक्रमण करते जा रहे हैं, जो हमारे पारम्परिक जल स्रोतों के भविष्य के लिए अच्छा नहीं है। यदि हमें अपने जल स्रोतों  को जीवित रखना है तो अधिक से अधिक मात्रा में वृक्षारोपण करना होगा और इनके आसपास कम से कम 200 से 300 वर्गमीटर क्षेत्र वृक्षों से आच्छादित हो।

चौगांवछीना के ग्रामीणों की धारों, नौलों की संरक्षण और संवर्द्धन की यह पहल वाकई में सराहनीय है। यहाँ के सभी ग्रामीणों से अपेक्षा की जाती है कि वे इस मुहीम में पुण्य के भागीदार बने रहें। जल रहेगा तभी हमारा जीवन रहेगा।

Vinod Singh Gariya

ई-कुमाऊँ डॉट कॉम के फाउंडर और डिजिटल कंटेंट क्रिएटर हैं। इस पोर्टल के माध्यम से वे आपको उत्तराखंड के देव-देवालयों, संस्कृति-सभ्यता, कला, संगीत, विभिन्न पर्यटक स्थल, ज्वलन्त मुद्दों, प्रमुख समाचार आदि से रूबरू कराते हैं।

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