Mai Pahadon ko Raibasi एक लोकप्रिय गढ़वाली गीत है, जिसे सौरव मैठाणी और अंजलि खरे ने अपने मधुर कंठ से गाया है। इंग्लैंड में कार्यरत पेशे से इंजीनियर देशदीपक नौटियाल द्वारा लिखे इस गीत में नायक और नायिका के बीच के संवाद को दिखाया गया है। जिसमें नायक को पहाड़ी वाले पर गर्व है और वह अपने को पहाड़ का रैबासी (रहवासी) बताते हुए अपनी नायिका से कहता है –
“मैं पहाड़ का रहवासी हूँ और तुम सुख-सुविधाओं से भरे शहर दिल्ली की रहने वाली हो। यहाँ मैं धारे का शुद्ध प्रकृति प्रदत्त पानी पीता हूँ वहीं आप बिसलेरी जैसे ब्रांड के बंद बोतलों के पानी को पीने वाली हो। इसलिए देशी मैडम के साथ एक ठेठ पहाड़ी अनाड़ी की बराबरी नहीं हो सकती अर्थात अच्छी जोड़ी नहीं बन सकती है।”
गीत में नायक उत्तराखंड के ठेठ पहाड़ीपन को दिखाते हुए अपने को ऊँचे पर्वतों का पारम्परिक मोटे अनाज का भोजन करने वाला और मीठी बोली बोलने वाला ठेठ पहाड़ी बताता है। वह अपनी नायिका को कहता है तुम विभिन्न सुख-सुविधाओं के बीच रहने वाली हो, वहां आपको फ्री बिजली-पानी का का लाभ प्राप्त है और यहाँ मैं लम्फू यानि मिट्टी तेल की छोटी लालटेन से रात को प्रकाश का इंतजाम करता हूँ। शहरों में आप कुत्ते-बिल्लियों का शौक रखते हैं और यहाँ हम पहाड़ों में गाय-भैसों को पालते हैं और उनका दूध निकालते हैं। इसी प्रकार लेखक ने पहाड़ का जीवन और शहरों के रहन-सहन, खानपान की भिन्नता पर सुन्दर वर्णन किया है। आप इस गीत के नीचे दिए गए लिरिक्स को पढ़ें, भावार्थ आपको समझ में स्वतः ही आ जायेगा।
मैं पहाड़ों कु रैबासी गीत के लिरिक्स :
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