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ब्रह्मकपाल बद्रीनाथ: पितरों के मोक्ष और पिंडदान का सर्वोच्च तीर्थ।

On: November 3, 2025 3:19 PM
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देवभूमि उत्तराखंड में स्थित बैकुंठ धाम श्री बद्रीनाथ न सिर्फ जीवितों के लिए मोक्ष का द्वार माना जाता है, बल्कि पितरों की मुक्ति का सर्वोच्च तीर्थ स्थल भी है। यहां स्थित ‘ब्रह्मकपाल’ को पितरों की मोक्ष प्राप्ति का सुप्रीम कोर्ट कहा जाता है। मान्यता है कि यहां किया गया पिंडदान और तर्पण पितरों को सीधा मोक्ष प्रदान करता है।

श्राद्ध पक्ष के अवसर पर देशभर से हजारों-लाखों श्रद्धालु बद्रीनाथ पहुंचकर अपने पितरों का उद्धार करने हेतु ब्रह्मकपाल में तर्पण और पिंडदान करते हैं। आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक यह स्थल आस्था और श्रद्धा से सराबोर रहता है।

क्यों है ब्रह्मकपाल अद्वितीय?

धार्मिक मान्यता है कि पूरे विश्व में केवल बद्रीनाथ धाम के ब्रह्मकपाल में किया गया पिंडदान ही पूर्ण और आठ गुना फलदायी माना जाता है। हरिद्वार, काशी, गया, प्रयाग और पुष्कर जैसे तीर्थ पिंडदान के लिए प्रसिद्ध हैं, लेकिन ब्रह्मकपाल में किया गया तर्पण ही पितरों की आत्मा को मोक्ष दिलाता है। ब्रह्मकपाल को पितरों की मोक्ष प्राप्ति का सर्वोच्च तीर्थ (महातीर्थ) कहा गया है।

पुराणों में कहा गया है:

“आयुः प्रजां धनं विद्यां, स्वर्गं मोक्ष सुखानि च।
प्रयच्छति तथा राज्यं पितरः मोक्षतर्पिता।।”

यानी कि ब्रह्मकपाल पर पितरों को तर्पण करने से केवल मोक्ष ही नहीं बल्कि आयु, संतान, धन, विद्या और सुख-संपत्ति भी प्राप्त होती है।

ब्रह्मकपाल से जुड़ी पौराणिक कथा

पौराणिक मान्यता के अनुसार, जब ब्रह्मा अपनी उत्पन्न कन्या पर मोहित हो गए थे तो भगवान शिव ने क्रोधित होकर उनके पांचवें सिर को त्रिशूल से काट दिया। वह सिर शिव के त्रिशूल पर चिपक गया और उन्हें ब्रह्महत्या का पाप लग गया। संपूर्ण भारत के तीर्थस्थलों पर भटकने के बाद भी शिव इस पाप से मुक्त नहीं हो पाए। अंततः जब वे अलकनंदा नदी में स्नान कर बद्रीनाथ की ओर बढ़े, तो धाम से मात्र 200 मीटर पहले ब्रह्मा जी का कपाल उनके हाथ से गिर पड़ा और भगवान शिव को ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति मिली। तभी से यह स्थल ‘ब्रह्मकपाल’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

पुराणों के अनुसार जब भगवान शिव ब्रह्महत्या के पाप से मुक्त हुए, तब उन्होंने इस पवित्र स्थल को विशेष वरदान दिया। शिवजी ने कहा कि जो भी श्रद्धालु ब्रह्मकपाल में अपने पितरों का श्राद्ध करेगा, उसे प्रेत योनि में नहीं जाना पड़ेगा और उसकी कई पीढ़ियों तक के पितरों को मोक्ष प्राप्त होगा।

ब्रह्मकपाल बद्रीनाथ धाम के चरणों में बसा है और अलकनंदा नदी इस स्थान को पवित्र करती हुई प्रवाहित होती है। मान्यता है कि यहाँ किया गया श्राद्ध कर्म आत्मा को तत्काल प्रेत योनि से मुक्ति दिलाकर भगवान विष्णु के परमधाम में स्थान प्रदान करता है।

विशेष रूप से, जिन व्यक्तियों की अकाल मृत्यु हो जाती है, उनकी आत्मा व्याकुल होकर भटकती रहती है। ब्रह्मकपाल में ऐसे व्यक्तियों का श्राद्ध करने से आत्मा को त्वरित शांति मिलती है और प्रेत योनि से मुक्ति प्राप्त होती है।

पांडवों का संबंध

महाभारत के युद्ध के बाद जब पांडवों पर अपने ही बंधु-बांधवों की हत्या का पाप लगा, तब स्वर्गारोहण की यात्रा से पूर्व वे भी बद्रीनाथ आए और ब्रह्मकपाल पर अपने पितरों का तर्पण किया। तभी से यह स्थान पितृमोक्ष का सर्वोच्च स्थल माना जाता है।

वर्तमान में आस्था का केंद्र

आज भी श्राद्ध पक्ष में दूर-दराज से लाखों श्रद्धालु बद्रीनाथ पहुंचते हैं और अपने पितरों को स्मरण कर ब्रह्मकपाल पर तर्पण करते हैं। मान्यता है कि यहां किया गया श्राद्ध न केवल पितरों की आत्मा को शांति देता है, बल्कि परिवार में सुख-समृद्धि और वंश वृद्धि का मार्ग भी प्रशस्त करता है।

ब्रह्मकपाल केवल एक तीर्थस्थल नहीं, बल्कि आस्था, श्रद्धा और पितृ धर्म का जीवंत प्रतीक है। यही कारण है कि इसे “पितरों के मोक्ष और पिंडदान का सर्वोच्च तीर्थ” कहा जाता है।

Vinod Singh Gariya

ई-कुमाऊँ डॉट कॉम के फाउंडर और डिजिटल कंटेंट क्रिएटर हैं। इस पोर्टल के माध्यम से वे आपको उत्तराखंड के देव-देवालयों, संस्कृति-सभ्यता, कला, संगीत, विभिन्न पर्यटक स्थल, ज्वलन्त मुद्दों, प्रमुख समाचार आदि से रूबरू कराते हैं।

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