उत्तराखंड में बैशाखी के त्यौहार को मनाने की विशेष परम्परा।

vishuvat sankranti in uttarakhand

बैसाखी भारत के सभी राज्यों में अलग-अलग नाम से मनाई जाती है। उत्तराखंड में बैसाखी "बिखौती" के नाम से जानी जाती है। यहाँ हर एक संक्रांति को कोई मेला या त्यौहार आयोजित होता है। बैसाख के महीने की संक्रांति को 'विषुवत संक्रांति' (Vishuvat Sankranti) के नाम से जाना जाता है। इस दिन कुमाऊं में स्याल्दे बिखोती का मेला लगता है। 

बिखौती को विष मुक्ति दिवस यानि 'विषु त्यार' के नाम से भी जाना जाता है। इस पर्व पर पहाड़ों में प्रातःकाल स्नान के पश्चात जौ की नवीन बालियों को शरीर पर छुवाते हुए 'विष बग, विष बग' कहकर शरीर के विष त्याग करने की परम्परा है और एक नई सकारात्मक ऊर्जा के साथ त्यौहार मनाया जाता है। विषु त्यौहार की शाम छोटे बच्चों को संक्रमण की आभाषी रोकथाम के लिए एक विशेष आकार वाली सीक, जिसे 'ताला' कहा जाता है, को लाल गर्म करके उनके नाभि प्रदेश में दागे जाने की भी परम्परा है। लेकिन यह परम्परा अब कुछ ही अनुभवी लोगों द्वारा अपनाई जाती है।   

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इसी के साथ बिखोती को संगमों पर नहाने का भी रिवाज है। लोग विभिन्न नदियों और संगमों पर नहाने जाते हैं। इस दिन इन संगमों पर भी अच्छा खासा मेला लग जाता है। इस दिन तिलों से नहाने का भी रिवाज है। तिल पवित्र होते हैं और हवन यज्ञ में प्रयोग होते हैं। कहते हैं कि साल भर में जो विष हमारे शरीर में जमा हुआ होता है इस दिन तिलों से नहाने पर वह विष झड़ जाता है।  

बागेश्वर के कपकोट में विषु त्योहार पर लाटू देवता की पूजा सम्पन कराई जाती है। आंधी-तूफ़ान और ओलों से अपनी फसल के बचाव के लिए पारम्परिक रूप से अपने गांव के चारों दिशाओं में विधि-विधान के साथ कीलित किया जाता है स्थानीय भाषा में इसे आर बांधना कहते हैं। कपकोट में इस दौरान स्याल्दे का मेला लगता है और सुप्रसिद्ध काशील देव मंदिर में पूजा का आयोजन होता है। 

बैशाखी के दौरान अल्मोड़ा जिले के द्वाराहाट में सुप्रसिद्ध 'स्याल्दे बिखौती' का मेला लगता है। जो अपनी विशिष्ट परम्पराओं के कारण पूरे प्रदेश में ख़ास स्थान रखता है। इस मेले को देखने के लिए दूर-दूर से लोग द्वाराहाट पहुँचते हैं।  

आईये हम अपनी  परम्पराओं का निर्वहन करते हुए अपने पर्वों को मनाएं। आप सभी को 'विषुवत संक्रांति' 'विषु त्यार' और स्याल्दे बिखौती की शुभकामनायें।