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बागेश्वर-दानपुर के प्रमुख तीन शक्तिपीठों में से एक पोथिंग शक्तिपीठ

On: November 2, 2025 9:50 PM
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पोथिंग भगवती मंदिर
त्तराखण्ड की पावन भूमि में बागेश्वर जनपद में कपकोट के निकटस्थ पोथिंग गांव के शीर्ष भाग में जगजननी मां भगवती का महिमामय धाम स्थित है। परम आस्था, विश्वास और मान्यता के अनुसार यहां पर मां भगवती, दुर्गा, गिरिजा माता, मां नन्दा, माई आदि नामों से विराजमान हैं और श्रद्धालु भक्तजनों की अभिलषित कामनाओं को पूर्ण करती है। कोई भी खाली हाथ नहीं लौटता है मां के इस ममतामय दरबार से।  
 

अपने पिता दक्षप्रजापति के यज्ञ में भगवान शिव के अपमान से अपमानित एवं अत्यन्त उद्विग्न मां सती द्वारा हवन कुंड में स्वयं की आहुति दिये जाने के पश्चात रौद्र रूप में भगवान रूद्र द्वारा ले जाई जा रही मां सती के दग्ध अंग इस धरा पर जहां-जहां गिरे थे वहां-वहां शक्तिपीठ स्थापित हो गये। आज इन शक्तिपीठों के नाम स्मरण मात्र से ही मां प्रसन्न होकर इच्छित फल प्रदान करती है। मान्यतानुसार यहां पोथिंग में मां भगवती ने संसार के कल्याण के लिए विचरण करते हुये एक रात्रि के लिए विश्राम किया था तथा अपने भक्तजनों को दर्शन-लाभ प्रदान कर कृतकृत्य किया था। वस्तुतः पोथिंग एक शक्तिपीठ ही नहीं शक्ति का पावन धाम भी है।


इस संसार में कल्प आते रहे हैं और कल्पान्तकारी अनेक परिवर्तन होते रहे हैं परन्तु मां के निवास की इस भूमि पर युग-युगों से अभी तक कोई प्रभाव दृष्टिगोचर नहीं होता है। मां का स्नान-मार्जन का जल स्रोत आज भी अजस्र वेग के साथ मंदिर के पार्श्व भाग में सदानीरा कल्लोलिनी मां जान्हवी की धारा की तरह इस जुमईघाट नामक स्थान पर प्रवाहमान है। पुराणों में यह वर्णित है कि त्रियुगीनारायण में मां पार्वती ने देवाधिदेव लोकशंकर भगवान शंकर के साथ भंवरें ली थी परन्तु पोथिंग का यह पावन स्थल तो मां का मूर्तिमान तपस्या स्थल है। शिवजी की उपस्थिति यहां सदैव बनी रहती है क्योंकि बिना शिव के भी शव सरीखे बन जाते हैं अतः पोथिंग के निकट ही चिरपतकोट नामक उतुंग शिखर पर सिद्ध-साधक देव भगवान शिव के रूप  में सदा साधनारत माने जाते हैं।

पोथिंग और तोली गांवों के शीर्ष भाग में स्थित कुण्ड और सुकुण्ड नामक स्वच्छ शीतल जल कुण्डों की महिमा शिव-पार्वती की ही अनिर्वचनीय महिमा से सम्बन्ध रखती दृष्टिगोचर होती है। इन कुण्डों के जल से स्नान करना गंगा और मानसरोवर स्नान के महत्व को धारण करता है। पोथिंग गांव के चरणों में सौ-धारा सरमूल से उदभूत सरयू गंगा की पावन धारा की उपस्थिति भी पौराणिक, आध्यात्मिक एवं भौगोलिक स्तर पर आस्था के नूतन द्वारों की ओर विचरण करने को प्रेरित करती है। शिखर के मूलनारायण, वहां स्थित गुफा, गुफा के अन्तःस्रोत के रूप में विशाल जलधारा का कोलाहल, सनगाड़में प्रभु का नौलिंग-बंजैंण के रूप में आविभति, बदियाकोटमें निवास, पाण्डुस्थलकैरूथलकी ऐतिहासिकता तथा पास में ही शुम्भगढ़ नामक गांव की स्थिति से यह सम्पूर्ण क्षेत्र मां के आत्मीय अनुग्रह से परिपूर्ण हो गया है।

 

पोथिंग स्थित भुवनेश्वरी भगवती अति उदार, दयालु, ममतामय एवं प्रकाशमान है। उनकी महिमा का सूरज किसी प्रचार-प्रसार की अपेक्षा नहीं रखता है। पहाडांवाली शेरावाली माता की तरह पिण्डों में प्रकट होने वाली माता के पोथिंग स्थित भवन में जनश्रुति के अनुसार एक शंख, चिमटा, नगारा, घण्टी एवं धूप प्रज्वलित करने वाला धुपैंण स्वयं प्रकट हुये थे। भक्ति से ओतप्रोत साधक को आज भी इन दर्शन सुलभ हो सकते हैं।

मां अनन्त है और मंगलमयी मां की महिमा अनन्त है। देवासुर संग्राम में पराभव को प्राप्त देवों की रक्षा के कवच के रूप में प्रकट मां दैत्यराज महिसासुर के वध के लिए देवों की आह से उत्पन्न अयोनिज है तथा सर्वार्थ साधिका हैं। पोथिंग स्थित मां की निवास भूमि है। चीन-पाकिस्तान के साथ हुए अनेक युद्वों में सैनिक बहुल इस क्षेत्र का एक सैनिक भी वीरगति को प्राप्त नहीं हुआ।
 
चन्द राजाओं के शासन काल में अल्मोड़ा कारागार में बंद यहां के ग्रामीण श्री बलाव सिंह गड़िया (गड़िया लोगों के पूर्वज) की हथकड़ियां और पावों में पड़ी बेड़ियां स्वयं खुल गई थी। राजा के द्वारा इस अचरज का कारण पूछे जाने पर उन्होंने बताया था कि उसे अष्टमी को सम्पन्न होने वाली पूजा हेतु मां के दरबार में पोथिंग जाना है। मां ने उन्हें बुलाया है। राजा ने उन्हें मुक्त कर दिया था। यहीं के मूल निवासी अब मुंबई में बड़े व्यवसायियों में गिने जाने वाले श्री गणेश चंद्र, रामदत्त जोशी बताते हैं कि अति अकिंचन स्थिति में घर से मुंबई जाकर मां की कृपा से ही उनके परिवार की कायापलट हो गई।
 
श्री बदरीनाथ तथा केदारनाथ धाम की तरह ही पोथिंग में स्थित देवी धाम के कपाट भी परम्परानुसार प्रत्येक वर्ष भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी एवं अष्टमी ( एक वर्ष पंचमी एवं एक वर्ष अष्टमी) की तिथि को ही भव्य आयोजन के साथ खोले जाते हैं। इन तिथियों की पूर्व रात्रियों में भगवती जागरण, डंगरियों में देवी अवतरण आदि अनुष्ठान सम्पन्न होते हैं। ढोल-नगाड़ें आदि वाद्य यंत्रों की ध्वनि से अंचल गुंजित रहता है। आशा, उल्लास और भक्ति की त्रिवेणी में जन समुदाय नहाने लगता है। हुड़के की थाप के साथ शुचिता, स्नेह और शालीनता के पुष्प बिखेरना, झोड़ें-चांचरी, बैर, भगनौल का मन भावन आयोजन साथ-साथ चलता रहता है। इस समय चैत्र मास में बोई गई लहलहाते खेतों में धान की फसल कट रही होती है और मां को अर्पित करने को नया चावल प्रस्तुत हो रहा होता है।
 
पोथिंग में मनाये जाने वाले इस महोत्सव को स्थानीय बोली में आठों और स्यौपाती पुकारा जाता है। आठों पूजा अष्टमी एवं स्यौपाती पूजा पंचमी तक चलती है। इस महोत्सव के अवसर पर मां को कच्चे अन्न, फल-फूल का ही भोग अर्पित किया जाता है। पहले मंदिर में पशुबलि की प्रथा थी जो अब बन्द हो चुकी है।
 
 
uttroda kela bhagwati mandir pothing
उत्तरौड़ा गांव से कदली वृक्ष लाते हुए।


नैनीताल और अल्मोड़ा में मनाये जाने वाले नंदा महोत्सव में कदली वृक्ष से मां नंदा-सुनंदा के मूर्तियों के निर्माण की तरह पोथिंग में भी कपकोट घाटी में स्थित मां का मायका कहे जाने वाले गांव उतरौड़ा से आयोजन पूर्वक आमंत्रित कर कदली वृक्ष ले जाया जाता है। ढोल-नगाडे़ वादन के साथ तथा डंगरिये में देवी अवतरण के साथ जिस कदली वृक्ष में कम्पन पैदा होती है उसी में मां के धरा पर अवतरण की अनुभूति कर पोथिंग ले जाया जाता है। यह बड़े परमानन्द का क्षण होता है। भोग और प्रसाद की सम्पूर्ण सामग्री गांव के निवासी ही मिलकर इकट्ठा करते है। पनचक्की से सारा गेहूं पीसा जाता है। उल्लेखनीय है कि हजारों की संख्या में मेले में उपस्थित हुए प्रत्येक व्यक्ति को महोत्सव के अन्त में प्रसाद के रूप में एक भारी-भरकम पूड़ी प्रदान की जाता है। इस पूड़ी का वजन करीब 300 से 500 ग्राम तक होता है।

पूजा के अन्त में  डिकर सेवाना की पवित्र एवं भावपूर्ण रस्म अदा की जाती है। बाजे गाजे के साथ डंगरिये नृत्यपूर्वक विविध अलंकरणों से अलंकृत मां के विग्रह को गोद में लिए हुये भक्त मंडली के जयकारे के साथ पास में बहने वाले जल के स्रोत पर जाते हैं और विग्रह विसर्जन की रस्म पूर्ण करते हैं। मर्म की छू लेने वाली मां की इस विदाई वेला पर सहज ही श्रद्धालु जनों की आंखें छलक उठती हैं। तत्पश्चात मन्दिर के पट बंद हो जाते हैं वर्षभर के लिए।

पोथिंग में मां का शक्तिपीठ अनन्त महिमामय है। मां के दर्शन और उनका ध्यान करने के बाद ही आस्तिक जन मां की महिमा एवं चमत्कार स्वयं अनुभव करते हैं।
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विनोद सिंह गड़िया द्वारा टंकित श्री दामोदर जोशी ‘ देवांशु’ का आलेख।

  


 

Vinod Singh Gariya

ई-कुमाऊँ डॉट कॉम के फाउंडर और डिजिटल कंटेंट क्रिएटर हैं। इस पोर्टल के माध्यम से वे आपको उत्तराखंड के देव-देवालयों, संस्कृति-सभ्यता, कला, संगीत, विभिन्न पर्यटक स्थल, ज्वलन्त मुद्दों, प्रमुख समाचार आदि से रूबरू कराते हैं।

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