गासेरा-ऐसा धान का खेत जिसमें हर वर्ष बिना बोये ही पौधे उग आते हैं।

kuti village Rice Field
Gasera-Kuti Village Munsyari

उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में स्थित आदि कैलाश जाने वाले मार्ग पर पड़ने वाले राज्य के सुदूरवर्ती गांव कुटी में हर साल धान का खेत लहलहा उठता है, लेकिन आपको यह जानकार हैरानी होगी कि धान के इन पौधों में बीज (दाने) नहीं लगते। नवंबर आते-आते धान का यह खेत खुद ही समाप्त हो जाएगा। बताते हैं कि जब पांडवों ने इस क्षेत्र में प्रवास किया था तब कुटी गांव में कुंती के लिए कुटिया बनाई थी। करीब एक वर्ष तक पांडव इस इलाके में रहे। तब उन्होंने खेत भी तैयार किए थे।

कुटी गांव की सीमा पर स्थित इस खेत में हर साल जून में खुद ही धान उग आते हैं। ऐसा लगता है जैसे किसी ने धान की पौध लगा दी हो। सभी पौधे समान दूरी पर बड़े सिस्टम के साथ उगे होते हैं। इन पौधों से धान की खुशबू भी आती है। यह बात स्थानीय लोगों को इसलिए भी आश्चर्यजनक लगती है, क्योंकि इस इलाके में गर्बाधार से आगे किसी भी गांव में कोई फसल पैदा नहीं होती। 

यह क्षेत्र अत्यधिक ऊंचाई पर होने के कारण यहाँ मात्र छोटी-छोटी वनस्पतियां ही नजर आती हैं, लेकिन कुटी गांव की सीमा में हर साल बड़े तरीके से उगने वाले धान के पौधों को देखकर बड़ा आश्चर्य होता है। कुटी गांव के लोग इस खेत को 'गासेरा' कहते हैं। 'गा' का अर्थ 'धान और 'सेरा' का अर्थ 'खेत' होता है, जो लोग इस खेत के पास पहुंचते हैं वह बड़ी आस्था के साथ खेत को नमन करते हैं। धान का यह खेत हर साल इसी तरह तैयार होता है और बिना फल दिए नष्ट हो जाता है।

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इतिहासकार डा. मदन चंद्र भट्ट के अनुसार कुटी के आसपास पांडवकालीन कई प्रमाण मौजूद हैं। इन प्रमाणों को देखकर लगता है कि पांडवों ने यहां प्रवास किया था। वह कहते हैं कि लाक्षागृह भस्म होने के बाद पांडवों ने कैलास मानसरोवर की ओर रुख किया था और लंबे समय तक इस यात्रा मार्ग में पड़ने वाले कुटी गांव में विश्राम किया। कुटी में धान का खेत पांडवकालीन ही है।

साभार : श्री कृष्णा गर्ब्याल