उत्तराखण्ड के बागेश्वर जनपद स्थित कपकोट ब्लॉक के मंगल दा क्षेत्र के प्रसिद्ध बीनबाजा (मशकबीन) वादक के रूप में पहचाने जाते हैं। इनके मशकबीन की धुन का हर कोई कायल है। पोथिंग स्थित उनके आवास में एक छोटी सी मुलाकात के दौरान उन्होंने बताया कि 17 वर्ष की आयु से ही इन्होने इस बाजे को व्यावसायिक रूप में बजाना प्रारम्भ कर दिया था। 56 वर्षीय मंगल दा कहते हैं मेरी इस कला ने मुझे एक पहचान दी। इसी बीनबाजे को बजाकर मैंने अपने परिवार का भरण-पोषण किया और अपनी आर्थिक स्थिति भी मजबूत की।
पोथिंग गांव निवासी प्रसिद्ध बीनबाजा वादक मंगल राम कहते हैं उन्हें गांव के अलावा कपकोट, बागेश्वर, मुनस्यारी, देवाल, हल्द्वानी आदि स्थानों से भी उनकी इस कला के प्रदर्शन के लिए बुलावा आता है। बदलते दौर में पहाड़ के इस लोक वाद्य के वादक को बचाने की एक चुनौती है। बैंड बाजे, डीजे, पियानो आदि ने उनकी इस कला को प्रभावित किया है पर वे कहते हैं पहाड़ के संस्कृति प्रेमी आज भी मशकबीन को प्राथमिकता देते हैं।
मंगल दा का पूरा परिवार उत्तराखण्ड की लोकसंस्कृति के संरक्षण और संवर्धन में जुटा है। उनके बेटे राजेंद्र राम यहाँ के प्रसिद्ध ढोल वादकों में गिने जाते हैं। वहीं दूसरे बेटे को वे इस कला में निपुण बनाने के लिए निखार रहे हैं। मंगल दा और उनके परिवार ने अपनी कला से ही अपनी आर्थिक स्थिति को भी मबजूत किया है। हम सभी को उनकी लगन और मेहनत से सीख लेने की आवश्यकता है।
मंगल दा से भेंट के दौरान उनकी एक छोटी सी प्रस्तुति –