शकुनाखर-कुमाऊंनी संस्कृति के शगुन गीत।

Shakunakhar
कुमाऊंनी संस्कृति के शगुन गीत

'शकुना दे काज ये अति नीका सो रंगीलो, पाटल अंचलि कमलै को फूल सोदी फूल मोलावंत, गणेश, रामीचंद, लछिमन, भरत, चतुर लवकुश जीवा जन्मे’।

किसी भी शुभ कार्य में भगवान की स्तुति में इन दुर्लभ शब्दों से मिलकर बनी ये पंक्ति कुमाऊंनी संस्कृति के ‘शगुन आंखर’ गीतों का वो हिस्सा हैं जिसे 21वीं सदी की आधुनिकता ने इतिहास की दहलीज पर खड़ा कर दिया है।

वेद-पुराणों में देवताओं की स्तुति के लिए उल्लिखित मंत्रों का जब लोकीकरण हुआ तब यही मंत्र 'शगुन आँखर' रूप में जन्मे थे। विवाह, जनेऊ, नामकरण संस्कार में शगुन गीतों को गाने की परंपरा रही है। इनके माध्यम से पौराणिक देवता गणेश, लक्ष्मी, शिव के साथ ही विष्णु अवतार मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम, शेषावतार लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न, लव-कुश समेत कई देवताओं के नाम लिए जाते हैं। देवस्मरण के बाद जिस घर में शुभ कार्य हो, उस परिवार के प्रत्येक व्यक्ति का नाम गीतों के माध्यम से ही पुकारते हुए सुख-समृद्धि की प्रार्थना की जाती है।


शकुनाखर उत्तराखंड के कुमाऊँ में शुभ कार्य के अवसर पर गाये जाने वाले गीत हैं। जिसे हम मंगल गीत भी कह सकते हैं। यह दो शब्द 'शकुन' और 'आंखर' से मिलकर बना है। शकुन अथवा शगुन और आंखर मतलब बोल। इस प्रकार 'शकुनाखर' का मतलब है शगुन के बोल। 

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शकुनाखर गीतों (Shakunakhar) की शुरूआत नारी भजनावली से होती है। फिर मोतीमाणी, गणेश पूजन, निमंत्रण, मातृ पूजा, बसोधारा, आवदेव, पुण्यावाचन, कलश स्थापन, नवगृह और आखिर में सिंचन गीत गाया जाता है। गीतों को गाने का प्रहर अलग-अलग रहता है। विवाह में बारात के प्रस्थान-आगमन के साथ-साथ सुबह और शाम के समय ही गीत गाए जाते हैं। बुजुर्ग महिलाओं का समूह एक सुर, लय और ताल में गीत गाता है।


नामकरण हेतु शकुन आंखर

आज बाजी रहे, बाजा बाज रहे,
रामीचन्द्र दरबार, लछीमन दरबार।
बधाईया रातों ए बाज बाजिये राति ए,
तू उठ रानी बहुआ, सीता देहि बहुआ,
बहुरानी ओढो, दक्षिण को चीर, ए
हम तो ओढे़ रहे, हम तो पैरि रहे,
अपने बाबुल प्रसाद, ससुर दरबार, प्रिय परसाद,
लला के काज, संय्यां के राज, बलम दरबार,
बधाईयां राती ए, ए सोहाई है रातो ए,।

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बच्चे को नामकरन के दिन प्रथम सूर्य दर्शन कराया जाता है, इस अवसर पर निम्न शकुन आंखर गाया जाता है-

अपना पलना, अपना पलना,
अपना पलना, हस्ती घोड़ा,
हम जानू, हम जानू,
बबज्यू मेरा, कक्ज्यू मेरा,
मेरा सूरिज जुहारए,
बाला की, भाई बाला की माई,
हरखि, निरखि,
हम जानू, हम जानू बबज्यू,
ककज्यू मेरा, सुरिज जुहारए।


लिपि घैंसी, अंगना में,
पुरी हाला चौकी,
तसु चौका बैठाल पंडित ज्यू,
रामीचन्द्र पंडित लछीमन,
आन ए पाट,
बुणै हाली डोरी,
तसु डोरा पैरली सीता देही,
सुमित्रा देही, बहुराणी,
आजु बधावन नगरी सुहावन।


विवाहोत्सव निमंत्रण गीत


सूवा रे सूवा, बणखंडी सूवा,
जा सूवा घर-घर न्यूत दी आ।
 
हरियाँ तेरो गात, पिंगल तेरो ठून,
रत्नन्यारी तेरी आँखी, नजर तेरी बांकी,
जा सूवा घर-घर न्यूत दी आ। गौं-गौं न्यूत दी आ।

नौं न पछ्याणन्यू, मौ नि पछ्याणन्य़ूं, कै घर कै नारि दियोल?
राम चंद्र नौं छु, अवध पुर गौ छु, वी घर की नारी कैं न्यूत दी आ। 

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गणेश पूजा के समय गाया जाने वाला फाग

जय जय गणपति, जय जय ए ब्रह्म सिद्धि विनायक।
एक दंत शुभकरण, गंवरा के नंदन, मूसा के वाहन॥
सिंदुरी सोहे, अगनि बिना होम नहीं,
ब्रह्म बिना वेद नहीं,
पुत्र धन्य काजु करें, राजु रचें।
मोत्यूं मणिका हिर-चैका पुरीयलै,
तसु चैखा बैइठाला रामीचन्द्र लछीमन विप्र ऎ।
जौ लाड़ी सीतादेही, बहुराणी, काजुकरे, राजु रचै॥
फुलनी है, फालनी है जाइ सिवान्ति ऎ।
फूल ब्यूणी ल्यालो बालो आपूं रुपी बान ऎ॥


मातृका पूजन के समय गाए जाने वाला मंगल गीत

कै रे लोक उबजनी नाराइन पूत ए?
कै रे लोक उबजनी माई मत्र देव ए?
नाराइनी कोख अबजनी माई मात्र देव ए।
माथी लोके उबजनी माई मात्र देव ए॥
कौसल्या रांणि कोखि, सुमित्रा रांणि कोखि,
उबजनी रामीचन्द्र, लछीमणे पूत ए।
माथी लोके उबजनी माई मात्र देव ए,
सीतादेहि कोखी, बहूरांणि कोखी उबजनीं।
लव-कुश पूत ए। बालकै सहोदरै पूत ए।
माथी लोकै उबजनीं माई मात्र देव ए।
दूलाहिण कोखी, बहूरांणि कोखी उबजनी,
बालकै सहोदरे पूत॥


वसोधारा

किसी भी शुभ कार्य को संपन्न करते समय घी से सप्तधारा दी जाती है, इसे वसोधारा देना कहते हैं। इस समय महिलायें यह शकुन आंखर जाती हैं - 

वसोधारा बसोधारा धार उघारा 
तसू घृत ले रामीचन्द्र लछीमन माथ भराए 
वसोद्धारा बसोद्धारा धार उघारा 
तसू घृत ले सीता देही बहुराणी श्रृंगार करए 
तसु घृत ले (कुटुम्ब के पुरुषों का नाम) माथ भराए 
तसु घृत ले (कुटुम्ब की महिलाओं का नाम) श्रृंगार कराए।

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निमंत्रण गीत

जा रे भंवरिया पितरों का देश-पितरों का द्वार ए,
को रे होलो पितरों का देश, पितरों का द्वार ए?
आधा सरग चन्द्र सुरीज, आधा सरग पितरों का द्वार ए।
सरग तैं पुछना छन दशरथ ज्यू ए।
की रे पूत ले, पूत नांति लै, की रे बहुवे ले दिवायो छ न्यूंतो, बढ़ायों उछव?
जो रे तुमें लै नाना छीना दूददोया,
नेत्र पोछा घृतमाला अमृत सींचा,
उं रे तुमें ले भला घरे की, भला वसै की सीतादेहिं आंणी, बहुराणीं आणी,
जीरो पूतो-पूतो, नातियां लाख बरीख,
तुमरी सोहागिनी जनम आइवांती जनम पुत्रावान्ती॥

****
प्रातहि न्यूत में सूरज किरन को अधिकार, 
सन्ध्या न्यूत में चन्द्रमां तारन को अधिकार।
ब्रह्मा विष्णु, न्यूत में काज सो ब्रह्मा, विष्णु सृष्टि रचाय 
गणपति न्यूत में काज सौं, गणपति सिद्धि ले आय। 
ब्राह्मण न्यूत में काज सौं सुहागिनी, न्यूत में काज सौं। 
कामिनी न्यूत में काज सौं ब्राह्मण वेद पढ़ाय। 
सुहागिनी मंगल गाय, कामिनी दियो जगाय। 
शंख-घंट न्यूत में काज सौं मालिनी न्यूत में काज सौं। 
भ्यूरिय न्यूत में काज सौं शंख घंट शब्द सुनाय। 
मालिनी फूल ले आय, भ्यूरिया दूबो ले आय।
कुम्हारिनि न्यूत में काज सौं विवरिनी न्यूत में काज सौ। 
अहोरिनी न्यूत में काज सौं कुम्हारिनी कलश ले आय। 
धिवरिनि शकुन ले आय, अहीरिनि दूध ले आय गूजरिनि दइया ले आये।
बहिनियाँ न्यूत में काज सौं बान्धव न्यूत में काज सौं 
बहिनियां रोचन ले आय, बान्धव शोभा ले आय। 
बढ़इया न्यूत में काज सौं बढइया चौको ले आय। 
वाजिन्न बाजो ले आय समाए बधायो न्यूंतिये

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आवदेव (पितृपूजन गीत )

उत्तराखंड में शुभ कार्यों में पितृपूजन की परम्परा है। उनके नाम से वस्त्र, द्रव्य, अनाज, फल, मेवे रखे जाते हैं। इस दौरान तीन कुल के पितरों को उनके नाम लेते हुए याद किया जाता है। महिलायें उन्हें आमंत्रण देने के लिए इस दौरान यह गीत गाती हैं -

जाना जाना भँवरिया माथ लोक 
माथ लोक पितरन न्यूत दे आए। 
नौं नीं जाणन्यूं गौं नीं पछाड़न्यूं 
कॉ रे होलो पितरन को द्वार ए 
आधा सरग बादल रेखा आधा सरग चन्द्र सूरज ए 
आध सरग पितरन का द्वार वॉरे लोली पितरन को द्वार ए 
आओ पितरो मध्य लोक, तुमन करणीं न्यूंत छ आंज 
स्वर्ग तैं पूछना छन दशरथ ज्यू यो कसू घरी न्यूतो छ 
आज जोयो कसो बहुअन ले गोत्र बढ़ायो ए। 
जो तुमन लै बड़ा कुल की बड़ा बंश की बहुआ आणी 
उसू बहुअन ले गोत्र उज्यारो ए जो रे तुमन लै 
नाना छन उर ही में बोका, भीमें छोड़ा उसू धरी न्यूतो छ 
आज ए कसिकै ऊँलो पूत नातियो
(कुटुम्ब का पुरुषों नाम) लंका छोडी पॉ न पहुंचे, 
नजर न सूझें सुनियो ललो पितरो खुटकूँणाँ 
रूपती लैलो किवाड़ ऐ छी रया तुम पुत नातियो 
लाख बरीस बहुआ तुमरी जनम आयुवन्ती 
बहुआ तुमरी जनम पुत्रवन्ती ए जो रे काज 
पूत नातियो हमन बलूंछा सोरे काज अति नीका ए 
सो रे काज सर्व सिद्ध ए...

पुण्यावाचन


रामीचन्द्र लाहीमन धरणी धराय हो घरणी धराय 
सीता देही बहू राणी दियो बड़ो दानत बड़ी रे 
अविय ले सम्पत्ति पुरिलये दियो बड़ी दान त 
ऐवान्ति मंगल देली त ब्राहाण वेद पढ़े। 
दुहागिनी मंगला देली त ब्राह्वाण वेद पढ़े।


कलश स्थापन

धरती धरम लै कलश थापि ले 
आजू भरियो कलश आज बधावन नगरी सुहावन 
सप्त धान्य ले कलश थापि ले 
तामा का कुम्भ ले कलेश थापि ले 
आज भरियो कलेश आज बधावन नगरो सुहावन 
गंग जमुन का नीर ले कलेश थापि ले 
आजु भरियो कलश आज बधावन नगरी सुहावन 
दधि-दूध-घृत ले कलेश थापि ले 
हल्दी की गॉठि ले कलश थापि ले 
साई का अक्षतन ले रेशमी वस्त्र ले 
तेसूत्रा धागा ले कलश थापि ले 
फूल. दूध ले कलश थापि ले
गाई का गोबर ले कलेश थापि ले 
खेत का जौने ले कलश थापि ले 
आजु भरियों कलश आज बधावन नगरी सुहावन.
लाड़ सुवालन ले कलश थापि ले 
फोणी बातसन ले थापि ले सर्व धान्य सर्व औषधिन ले 
कलश थापि ले धन द्वव्य लै कलेश थापि ले 
आज भरियो कलश, आजु बधावन नगरी सुहावन

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नव ग्रह पूजा

जै मंगल शुभ मंगल ऊन शुभ मंगल इनू घरि आये आज ए। 
गावन्त मंगल, बोलन्त शुभ मंगल ऊन शुभ मंगल इनू परि आज ए 
हंस बाहन चढ़ि ब्रह्मा ज्यू चलि आया ऊन शुभ मंगल धरि आज ए 
गरुड़ वाहन चढ़ि विष्णु ज्यू चलि आया ऊन शुभ मंगल धरि आज ए 
वृषभ वाहन चढ़ि शम्भू ज्यू बलि आया ऊन शुभ मंगल धरि आज ए
सिंह वाहन चढ़ि दुर्गा देवी चलि आ
वाहन चढ़ि गणेश ज्यू चलि आया, 
हस्ति वाहन चढ़ि इन्द्र ज्यू चलि आया ऊन शुभ मंगल धरि आज ए 
रथ वाहन चडि सूर्य ज्यू चलि आया ऊन शुभ मंगल धरि आज ए 
मृग वाहन चढ़ि चन्द्र ज्यू भलि आया 
भेष वाहन चढ़ि भौम ज्यू चलि आया 
सिंह वाहन चढ़ि बुध ज्यू चलि आया 
हस्ति वाहन बढ़ि गुरु ज्यू आया ऊन शुभ मंगल धरि आज ए 
अश्व वाहन चदि शनि ज्यू आया सिंह वाहन चढ़ि राहु ज्यू चलि आया 
गृध वाहन चदि केतु ज्यू चलि आया ऊन शुभ मंगल धरि आज ए 
अधिदेवता प्रत्याधि देवता चलि आया, ऊन शुभ मंगल धरि आज ए 
औरे देवा होला मण्डप बाहर ए. 
योरे देवा पूजियन लै सर्वसिद्धि होली, 
ऊन शोभा मंगल ईनू घरी आज ए।।