'शकुना दे काज ये अति नीका सो रंगीलो, पाटल अंचलि कमलै को फूल सोदी फूल मोलावंत, गणेश, रामीचंद, लछिमन, भरत, चतुर लवकुश जीवा जन्मे’।
किसी भी शुभ कार्य में भगवान की स्तुति में इन दुर्लभ शब्दों से मिलकर बनी ये पंक्ति कुमाऊंनी संस्कृति के ‘शगुन आखर’ गीतों का वो हिस्सा हैं जिसे 21वीं सदी की आधुनिकता ने इतिहास की दहलीज पर खड़ा कर दिया है।
शगुनाखर गीतों की शुरूआत नारी भजनावली से होती है। फिर मोतीमाणी, गणेश पूजन, निमंत्रण, मातृ पूजा, बसोधारा, आवदेव, पुण्यावाचन, कलश स्थापन, नवगृह और आखिर में सिंचन गीत गाया जाता है। गीतों को गाने का प्रहर अलग-अलग रहता है। विवाह में बारात के प्रस्थान-आगमन के साथ-साथ सुबह और शाम के समय ही गीत गाए जाते हैं। बुजुर्ग महिलाओं का समूह एक सुर, लय और ताल में गीत गाता है।
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नामकरण हेतु शकुन आंखर
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आज बाजी रहे, बाजा बाज रहे,
रामीचन्द्र दरबार, लछीमन दरबार।
बधाईया रातों ए बाज बाजिये राति ए,
तू उठ रानी बहुआ, सीता देहि बहुआ,
बहुरानी ओढो, दक्षिण को चीर, ए
हम तो ओढे़ रहे, हम तो पैरि रहे,
अपने बाबुल प्रसाद, ससुर दरबार, प्रिय परसाद,
लला के काज, संय्यां के राज, बलम दरबार,
बधाईयां राती ए, ए सोहाई है रातो ए,।
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बच्चे को नामकरन के दिन प्रथम सूर्य दर्शन कराया जाता है, इस अवसर पर निम्न शकुन आंखर गाया जाता है-
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अपना पलना, अपना पलना,
अपना पलना, हस्ती घोड़ा,
हम जानू, हम जानू,
बबज्यू मेरा, कक्ज्यू मेरा,
मेरा सूरिज जुहारए,
बाला की, भाई बाला की माई,
हरखि, निरखि,
हम जानू, हम जानू बबज्यू,
ककज्यू मेरा, सुरिज जुहारए।
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लिपि घैंसी, अंगना में,
पुरी हाला चौकी,
तसु चौका बैठाल पंडित ज्यू,
रामीचन्द्र पंडित लछीमन,
आन ए पाट,
बुणै हाली डोरी,
तसु डोरा पैरली सीता देही,
सुमित्रा देही, बहुराणी,
आजु बधावन नगरी सुहावन।
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विवाहोत्सव निमंत्रण गीत
सूवा रे सूवा, बणखंडी सूवा,
जा सूवा घर-घर न्यूत दी आ।
हरियाँ तेरो गात, पिंगल तेरो ठून,
रत्नन्यारी तेरी आँखी, नजर तेरी बांकी,
जा सूवा घर-घर न्यूत दी आ। गौं-गौं न्यूत दी आ।
नौं न पछ्याणन्यू, मौ नि पछ्याणन्य़ूं, कै घर कै नारि दियोल?
राम चंद्र नौं छु, अवध पुर गौ छु, वी घर की नारी कैं न्यूत दी आ।
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