उत्तराखण्ड के लोक देवता : गोलू और उनकी लोककथा।

 

उत्तराखंड की पावन धरा को ऋग्वेद में देवभूमि कहा गया है। यह धरा ऐसी है जहाँ देवी-देवताओं का सदैव वास रहता है। मनीषियों की पूर्ण कर्मस्थली भी इस पावन भूमि को कहा जाता है। यहाँ अनेक ऐसे चमत्कारिक धार्मिक स्थल हैं जहाँ की ख्याति देश ही नहीं अपितु विदेशों तक भी है। ऐसे ही उत्तराखंड के कुमाऊँ अंचल के गोलू देव और उनका धाम देश-विदेश में ख्याति प्राप्त है। त्वरित न्याय चाहने वाले लोग दूर-दूर से ईष्ट गोलू देवता के शरण में पहुँचते हैं। जिसकी गवाही चितई मंदिर में टंगे सैकड़ों अर्जियां/स्टाम्प पेपर देते हैं, जिन्हें न्याय की चाह में लोगों ने यहाँ लगाई हैं। कुमाऊँ में  गोलू  देवता को गोलू राजा, बाला गोरिया, ग्वल देवता, गौर भैरव आदि नामों से जानते हैं। इन्हें न्यायकारी, दूधाधारी, कृष्णावतारी आदि विशेषणों से विभूषित किया गया है।  इन्हें यहाँ लोक देवता का दर्जा भी प्राप्त है। जनपद बागेश्वर के कपकोट, पोथिंग आदि गांवों में ईष्ट गोलू देव, देवी भगवती के साथ घर-घर में स्थापित हैं। यहाँ लोग मार्गशीष या चैत्र की नवरात्रों में धूमधाम से बाला गोरिया के साथ देवी भगवती की पूजा करते हैं। कुमाऊँ में गोलू देवता के प्रसिद्ध मन्दिर चम्पावत, चितई (अल्मोड़ा) और घोड़ाखाल (नैनीताल) में स्थित हैं। 


ग्वल ज्यू और उनकी लोककथा -

जनश्रुतियों के अनुसार चम्पावत में कत्यूरी वंशी राजा झालुराई का राज था।  इनकी सात रानियाँ थी। राज्य में सभी तरफ खुशहाली थी, सभी प्रजाजन खुश थे।  दुखी थे तो केवल राजा झालुराई। राजा की सात रानियाँ परन्तु सात रानियाँ के होते हुए भी राजा नि:संतान थे। उन्हें हर वक्त यही बात कचोटती रहती थी कि मेरे बाद मेरा वंश कैसे आगे बढेगा? राजा इसी चिंता में डूबे रहते।  कुछ दिन बाद राजा ने अपने राज ज्योतिषी से अपनी व्यथा कही। राज ज्योतिषी ने सुझाव दिया कि महाराज ! आप भैरव को प्रसन्न करें, आपको अवश्य ही सन्तान सुख प्राप्त होगा। 

राजा ने भैरव पूजा का आयोजन किया और भगवान भैरव को प्रसन्न करने का प्रयास किया।  एक दिन स्वप्न में भैरव ने इन्हे दर्शन दिए और कहा - तुम्हारे भाग्य में संतान सुख नही है - मैं तुझ पर कृपा कर के स्वयं तेरे घर मैं जन्म लूँगा, परन्तु इसके लिए तुझे आठवीं शादी करनी होगी, क्योंकि तुम्हारी अन्य रानियाँ मुझे गर्भ में धारण करने योग्य नही हैं। राजा यह सुनकर प्रसन्न हुए और उन्होंने भगवान भैरव का आभार मानकर अपनी आठवीं रानी प्राप्त करने का प्रयास किया। 

एक दिन राजा झालुराई शिकार करते हुए जंगल में बहुत दूर निकल गए। उन्हें बड़े जोरों की प्यास लगी। अपने सैनिकों को पानी लाने का निर्देश देते हुए वो प्यास से बोझिल हो एक वृक्ष की छाँव में  बैठ गए। बहुत देर तक जब सैनिक पानी ले कर नहीं आए तो राजा स्वयं उठकर पानी की खोज में गए। दूर एक तालाब देखकर राजा उसी ओर चले। वहाँ पहुंचकर राजा ने अपने सैनिकों को बेहोश पाया।  राजा ने ज्यूँ ही पानी को छुआ उन्हें एक नारी स्वर सुनाई दिया - यह तालाब मेरा है - तुम बिना मेरी अनुमति के इसका जल नहीं पी सकते। तुम्हारे सैनिकों ने यही गलती की थी इसी कारण इनकी यह दशा हुई। तब राजा ने देखा - अत्यन्त सुंदरी एक नारी उनके सामने खड़ी है। राजा कुछ देर उसे एकटक देखते रह गए। तब राजा ने उस नारी को अपना परिचय देते हुए कहा - मैं गढ़ी चम्पावत का राजा झालुराई हूँ और यह मेरे सैनिक हैं।  प्यास के कारण मैंने ही इन्हे पानी लाने के लिए भेजा था।  हे सुंदरी ! मैं आपका परिचय जानना चाहता हूँ।  तब उस नारी ने कहा की मैं पंचदेव देवताओं की बाहें कलिंगा हूँ। अगर आप राजा हैं तो बलशाली भी होंगे। जरा उन दो लड़ते हुए भैंसों को छुड़ाओ, तब मैं मानूंगी की आप गढ़ी चम्पावत के राजा हैं। 

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राजा उन दोनों भैसों के युद्ध को देखते हुए समझ नहीं पाये कि इन्हे कैसे छुड़ाया जाए।  राजा हार मान गए। तब उस सुंदरी ने उन दोनों भैसों के सींग पकड़कर उन्हें छुडा दिया। राजा आश्चर्यचकित थे उस नारी के इस करतब पर।  तभी वहाँ पंचदेव पधारे और राजा ने उनसे कलिंगा का विवाह प्रस्ताव किय। पंच्देवों ने मिलकर कलिंगा का विवाह राजा के साथ कर दिया और राजा को पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद दिया। 

रानी कलिंगा अत्यन्त रूपमती एवं धर्मपरायण थी। राजा उसे अपनी राजधानी धूमाकोट में रानी बनाकर ले आए।  जब सातों रानियों ने देखा की अब तो राजा अपनी आठवीं रानी से ही ज्यादा प्रेम करने लग गए हैं, तो सौतिया डाह एवं ईर्ष्या से जलने लगीं। कुछ समय बाद यह सुअवसर भी आया जब रानी कलिंगा गर्भवती हुई।  राजा की खुशी का कोई पारावार न था. वह एक-एक दिन गिनते हुए बालक के जन्म की प्रतीक्षा करने लगे. उत्साह और उमंग की एक लहर सी दौड़ने लगी. परन्तु वे इस बात से अनजान थे, की सातों सौतिया रानियाँ किस षड्यंत्र का ताना बाना बुन रही हैं. सातों सौतनों ने कलिंगा के गर्भ को समाप्त करने की योजना बना ली थी और कलिंगा के साथ झूठी प्रेम भावना प्रदर्शित करने लगीं. कलिंगा के मन मैं उन्होंने गर्भ के विषय मैं तरह - तरह की डरावनी बातें भर दी और यह भी कह दिया की हमने एक बहुत बड़े ज्योतिषी से तुम्हारे गर्भ के बारे मैं पूछा - उसके कथनानुसार रानी को अपने नवजात शिशु को देखना उसके तथा बच्चे के हित मैं नही होगा.

जब रानी कलिंगा का प्रसव काल आया तो उन सातोम सौतों ने उसकी आंखों में पट्टी बांध दी और बालक को किसी भी तरह मारने का षडयंत्र सोचने लगी। जहां रानी कलिंगा का प्रसव हुआ, उसके नीचे वाले कक्ष में बड़ी-बड़ी गायें रहती थीं। सौतों ने बालक के पैदा होते ही उसे गायों के कक्ष में डाल दिया, ताकि गायों के पैरों के नीचे आकर बालक दब-कुचल्कर मर जाये। परन्तु बालक तो अवतारी था, सौतेली मांओं के इस कृत्य का उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा और वह गायों का दूध पीकर प्रसन्न मुद्रा में किलकारियां मारने लगा। रानी कलिंगा की आंखों की पट्टियां खोली गईं और सौतों ने उनसे कहा कि "प्रसव के रुप में तुमने इस सिलबट्टे को जन्म दिया है", उस सिलबट्टे को सातों सौतों ने रक्त से सानकर पहले से ही तैयार कर रखा था। उसके बाद सातों सौतों ने उस बालक को कंटीले बिच्छू घास में डाल दिया, परन्तु यहां भी बालक को उन्होंने कुछ समय बाद हंसता-मुस्कुराता पाया। तदुपरांत एक और उपाय खोजा गया कि इस बालक को नमक के ढेर में डालकर दबा दिया जाय और यही प्रयत्न किया गया, परन्तु उस असाधारण बालक के लिये वह नमक का ढेर शक्कर में बदल दिया और वह बालक रानियों के इस प्रयास को भी निरर्थक कर गया।

अंत में जब सातों रानियों ने देखा कि बालक हमारे इतने प्रयासों के बावजूद जिंदा है तो उन्होंने एक लोहे का बक्सा मंगाया और उस संदूक में उस अवतारी बालक को लिटाकर, संदूक को बंदकर उसे काली नदी में बहा दिया, ताकि बालक निश्चित रुप से मर जाये। यहां भी उस बालक ने अपने चमत्कार से उस संदूक को डूबने नहीं दिया और सात दिन, सात रात बहते-बहते वह संदूक आठवें दिन गोरीहाट में पहुंचा. गौरीहाट पर उस दिन भाना नाम के मछुवारे के जाल में वह संदूक फंस गया। भाना ने सोचा कि आज बहुत बड़ी मछली जाल में फंस गई है, उसने जोर लगाकर जाल को खींचा तो उसमें एक लोहे के संदूक देखकर वह आश्चर्यचकित हो गया। संदूक को खोलकर जब उसने हाथ-पांव हिलाते बालक को देखा तो उसने अपनी पत्नी को आवाज देकर बुलाया। मछुआरा निःसंतान था, अतएव पुत्र को पाकर वह दम्पत्ति निहाल हो गया और भगवान के चमत्कार और प्रसाद के आगे नतमस्तक हो गया।

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निःसंतान मछुवारे को संतान क्या मिली मानि उसकी दुनिया ही बदल गयी। बालक के लालन-पालन में ही उसका दिन बीत जाता। दोनों पति-पत्नी बस उस बालक की मनोहारी बाल लीला में खोये रहते, वह बालक भी अद्भूत मेधावी था। एक दिन उस बालक ने पने असली मां-बाप को सपने में देखा। मां कलिंगा को रोते-बिलखते यह कहते देखा कि- तू ही मेरा बालक है- तू ही मेरा पुत्र है। धीरे-धीरे उसने सपने में अपने जन्म की एक-एक घटनायें देखीं, वह सोच-विचार में डूब गया कि आखिर मैं किसका पुत्र हूं? उसने सपने की बात की सच्चाई का पता लगाने का निश्चय कर लिया। एक दिन उस बालक ने अपने पालक पिता से कहा कि मुझे एक घोड़ा चाहिये, निर्धन मछुआरा कहां से घोड़ा ला पाता। उसने एक बढ़ई से कहकर अपने पुत्र का मन रखने के लिये काठ का एक घोड़ा बनवा दिया। बालक चमत्कारी तो था ही, उसने उस काठ के घोड़े में प्राण डाल दिये और फिर वह उस घोड़े में बैठ कर दूर-दूर तक घूमने निकल पड़ता। घूमते-घूमते एक दिन वह बालक राजा झालूराई की राजधानी धूमाकोट में पहुंचा और घोड़े को एक नौले (जलाशय) के पास बांधकर सुस्ताने लगा। वह जलाशय रानियों का स्नानागार भी था। सातों रानियां आपस में बात कर रहीं थीं और रानी कलिंगा के साथ किये अपने कुकृत्यों का बखान कर रहीं थी। बालक को मारने में किसने कितना सहयोग दिया और कलिंगा को सिलबट्टा दिखाने तक का पूरा हाल एक-दूसरे से बढ़-चढ़कर सुनाया। बालक उनकी बात सुनकर सोचने लगा कि वास्तव में उस सपने की एक-एक बात सच है, वह अपने काठ के घोड़े को लेकर नौले तक गया और रानियों से कहने लगा कि पीछे हटिये-पीछे हटिये, मेरे घोड़े को पानी पीना है। सातों रानियां उसकी वेवकूफी भरी बातों पर हसने लगी और बोली- कैसा बुद्धू है रे तू! कहीं काठ का घोड़ा भी पानी पी सकता है? बालक ने तुरन्त जबाव दिया कि क्या कोई स्त्री सिलबट्टे को जन्म दे सकती है? सभी रानियों के मुंह खुले के खुले रह गये, वे अपने बर्तन छोड़कर राजमहल की ओर भागी और राजा से उस बालक की अभ्रदता की झूठी शिकायतें करने लगी।


राजा ने उस बालक को पकड़वा कर उससे पूछा "यह क्या पागलपन है,तुम एक काठ के घोड़े को कैसे पानी पिला सकते हो?" बालक ने कहा "महाराज जिस राजा के राज्य में स्त्री सिलबट्टा पैदा कर सकती है तो यह काठ का घोड़ा भी पानी पी सकता है" तब बालक ने अपने जन्म की घटनाओं का पूरा वर्णन राजा के सामने किया और कहा कि " न केवल मेरी मां कलिंगा के साथ गोर अन्याय हुआ है महाराज! बल्कि आप भी ठगे गये हैं" तब राजा ने सातों रानियों को बंदीगृह में डाल देने की आग्या दी। सातों रानियां रानी कलिंगा से अपने किये के लिये क्षमा मांगने लगी और आत्मग्लानि से लज्जित होकर रोने-गिड़गिडा़ने लगी। तब उस बालक ने अपने पिता को समझाकर उन्हें माफ कर देने का अनुरोध किया। राजा ने उन्हें दासियों की भांति जीवन यापन करने के लिये छोड़ दिया। यही बालक बड़ा होकर ग्वेल, गोलू, बाला गोरिया तथा गौर भैरव नाम से प्रसिद्ध हुआ। 

ग्वेल नाम इसलिये पड़ा कि इन्होंने अपने राज्य में जनता की एक रक्षक के रुप में रक्षा की और हर विपत्ति में ये जनता की प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रुप से रक्षा करते थे। गौरी हाट में ये मछुवारे को संदूक में मिले थे, इसलिये बाला गोरिया कहलाये। भैरव रुप में इन्हें शक्तियां प्राप्त थीं और इनका रंग अत्यन्त सफेद होने के कारण इन्हें गौर भैरव भी कहा जाता है।