![]() |
Ghee Tyar Uttarakhand |
उत्तराखण्ड
के सभी त्यौहार कृषि, प्रकृति और उनके पशुधन पर ही आधारित हैं। इन्हीं में
एक त्यौहार है 'घी त्यार', जिसे कुमाऊं में घी त्यार और गढ़वाल में 'घी
संक्रांद' के नाम से जानते हैं। घी त्यार हिंदी महीने के भाद्रपद संक्रांति 1
गत्ते को मनाया जाता है। कृषि और पशुधन से जुड़े इस पर्व को पूरे कुमाऊँ और
गढ़वाल में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस पर्व पर अनिवार्य रूप
से घी खाने की परम्परा है। मान्यता है कि इस पर्व के दिन घी का सेवन न करने
वाले लोग अगला जन्म घोंघे के रूप में लेते हैं। इस समय मौसम वर्षा का होता
है। पूरे पहाड़ हरेभरे, खेत लहलहा रहे होते हैं। संतरे, नींबू, माल्टा आदि
के फल आकर लेने लगते हैं। कहते हैं आज के दिन अखरोट में घी का संचार होता
है। घी त्यार के बाद ही अखरोट खाने लायक होते हैं। इसके अलावा दाड़िम भी घी
त्यार के बाद ही खाये जाते हैं।
घी त्यार पर यहाँ बेडू रोटी (उड़द की भरवां रोटी) और पिनालू (अरबी) के कोमल पत्तियों की सब्जी भी अनिवार्य रूप से बनाने की परम्परा है। इस दिन शिल्पकार भाई लोगों को लोहे के औजार जैसे दरांती, कुदाल, चिमटा इत्यादि भेंट करते हैं, जिसे 'ओग' देना कहते हैं। इनसे बदले में अनाज और रूपये देने की परम्परा है। लेकिन 'ओग' (ओलगी) देने की यह परम्परा समाप्ति के कगार पर है।
घी त्यार पर यहाँ बेडू रोटी (उड़द की भरवां रोटी) और पिनालू (अरबी) के कोमल पत्तियों की सब्जी भी अनिवार्य रूप से बनाने की परम्परा है। इस दिन शिल्पकार भाई लोगों को लोहे के औजार जैसे दरांती, कुदाल, चिमटा इत्यादि भेंट करते हैं, जिसे 'ओग' देना कहते हैं। इनसे बदले में अनाज और रूपये देने की परम्परा है। लेकिन 'ओग' (ओलगी) देने की यह परम्परा समाप्ति के कगार पर है।
घी त्यार : स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता का लोकपर्व।
उत्तराखण्ड के पर्वतीय अंचल में घी त्यार को चांचरी लगाने की भी परम्परा है। गांव के सभी लोग किसी मंदिर या घर के आँगन में एकत्रित होकर चांचरी गाकर अपना मनोरंजन करते हैं लेकिन यह परम्परा भी अब कुछ ही गांवों तक सीमित रह गयी है। बुजुर्ग बताते हैं उन्हें घी त्यार की चांचरी का बेसब्री से इन्तजार रहता था। अब उनके गांवों में यह परम्परा ख़त्म हो चुकी है। बागेश्वर के दानपुर इलाके में आज भी यहाँ के लोग अपनी इस अमूल्य धरोहर को बचाये हुए हैं। वे हर वर्ष घी त्यार पर चांचरी का भव्य आयोजन करते हैं। पुरुष, महिलाएं, बच्चे सब गोल घेरे में चांचरी गाकर घी त्यार का आनंद लेते हैं और एक दूसरे को शुभकामनायें देते हैं।
आज हम अपने पूर्वजों द्वारा प्रारम्भ किये गए
इन रीति-रिवाजों को भूलते जा रहे हैं। गांवों से होता पलायन भी हमारे इन
लोक पर्वों पर भारी पड़ रहा है। बदलते इस दौर में लोगों के मनोरंजन के साधन
भी बदलते जा रहे हैं।
आज हमें अपनी पहचान को बनाये रखना है तो हमें अपने लोकपर्वों और परम्पराओं को बचाना होगा।
Read also here - Ghee Sankranti : Folk Festival of Uttarakhand
#Ghee_Sankranti