दीपावली और ऐपण 

दीपावली का पर्व उत्तराखंड के कुमाऊँ अंचल में घर-आँगनों में केवल रोशनी का त्योहार नहीं, बल्कि सांस्कृतिक अभिव्यक्ति का प्रतीक भी है।

यहाँ इस अवसर पर घरों में ऐपण (रंगोली) और लक्ष्मी के पद चिन्ह बनाने की परम्परा है। घर की पवित्रता और समृद्धि का प्रतीक माने जाते हैं।

कुमाऊँनी महिलाएँ दीपावली से पहले घर की सफाई कर लाल एवं सफ़ेद रंग से ऐपण बनाती हैं। ये पारंपरिक डिज़ाइन धार्मिक और ज्यामितीय आकृतियों का संगम होते हैं — जैसे स्वस्तिक, षट्कोण, अष्टदल कमल आदि।

ऐपण: माँ लक्ष्मी के स्वागत का आधार

दीपावली से पूर्व यहाँ घरों में प्रवेश करते हुए माँ लक्ष्मी के पद चिन्ह बनाये जाते हैं। ये इस विश्वास का प्रतीक हैं कि माँ लक्ष्मी घर में प्रवेश कर रही हैं। माना जाता है कि जहाँ ये पद चिन्ह बनाए जाते हैं, वहाँ सुख-समृद्धि स्थायी होती है।

लक्ष्मी पद चिन्ह की परंपरा

प्रतीकात्मकता और वैज्ञानिक दृष्टि

इन ऐपणों के ज्यामितीय रूप केवल सौंदर्य नहीं, ऊर्जा संतुलन का भी माध्यम हैं। गोल, त्रिकोण और कमल जैसी आकृतियाँ सकारात्मक कंपन उत्पन्न करती हैं, जो घर में शांति और सौभाग्य का संचार करती हैं।

नई पीढ़ी और ऐपण कला

आज भी दीपावली के अवसर पर गाँवों और शहरों में महिलाएँ और बालिकाएँ ऐपण बनाना सीखती हैं। स्कूलों में प्रतियोगिताएँ होती हैं और सोशल मीडिया पर “कुमाऊँनी ऐपण” की तस्वीरें इस परंपरा को नई पहचान दे रही हैं।

दीपावली का असली आनंद केवल दीपों की रोशनी में नहीं, बल्कि उन सांस्कृतिक प्रतीकों में है जो हमारी विरासत को जीवित रखते हैं।

परंपरा से जुड़ाव

ऐपण और लक्ष्मी पद चिन्ह इस बात के प्रतीक हैं कि समृद्धि तभी टिकती है जब उसमें परंपरा, श्रद्धा और सौंदर्य का संगम हो।